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देते हैं । मणिकर्णिका के समीप मरण कर मनुष्य इष्ट स्थान को प्राप्त करता है । वह ईश्वर प्रेरित हो उस स्थान को पहुंचता है जो अशुद्ध आत्माओं द्वारा दुष्प्राप्य होता है । 136
(ख) जो वाराणसी में विधानानुसार अग्नि प्रवेश करते हैं वे शिव के मुख में प्रवेश करते हैं । जो भक्त निश्चयपूर्वक अनशन कर मरण करते हैं वे कोटिशत कल्प के बाद भी संसार में नहीं जाते । 137
अन्य किसी तरह से नहीं
। जो काशी में संस्थित हो
12. ब्रह्मज्ञान से ही जीवों की मुक्ति होती हैं अथवा ब्रह्म ज्ञानमय क्षेत्र प्रयाग में देह त्याग करने से मरण करते हैं उन्हें शिव स्वयं कान में ब्रह्मज्ञान देते हैं । वे उसके कान में तारक मंत्र देते हैं, जिससे उनकी तत्क्षण मुक्ति हो जाती है क्योंकि "तारक" देने से तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति हो जाती है 1138
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136. अन्तकाले मनुष्याणां
छिद्यमानेषु मषु । वायुना प्रेर्यमाणानां
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स्मृतिनैवोपजायते । ।
afar ता
भक्तानामीश्वरः स्वयम् ।
कर्मभिः प्रेर्यमाणानां
कर्णजाषं प्रयच्छति । ।
मणिक त्यजन्देहं
गतिमिष्टां व्रजेन्नरः ।
ईश्वरप्रेरितो याति
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(मत्स्य पुराण 182 / 22, 25)।
137. अग्निप्रवेशं ये कुर्युरविमुक्ते विधानत: 1 प्रविशन्ति मुखं ते मे निःसन्दिग्धं वरानने ।। कुर्वन्त्यनशनं ये तु मद्भक्ताः कृतनिश्चयाः । न तेषां पुनरावृत्ति: कल्पकोटिशतैरपि । । (मत्स्यपुराण 183/77-78)
दुष्प्रापामकृतात्मभि: ।।
138 स्कन्दपुराण (32 / 115 116) ब्रह्मज्ञानेन मुच्यन्ते
नान्यथा जन्तवः क्वचित् ।
ब्रह्मज्ञानमये क्षेत्र
प्रयागे वा तनुत्यजः ॥
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तुलसी प्रज्ञा
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