________________
स्वरूप तो केवल चैतन्यमात्र है। इसलिए चैतन्यमात्र स्वरूप में अवस्थान का नाम मोक्ष माना गया है । जब कि अनन्तज्ञानादि स्वरूप चैतन्य विशेष में अवस्थान को मोक्ष कहना चाहिए।
वेदान्त दर्शन
ब्रह्मसूत्र के रचयिता बादरायण वेदान्तदर्शन के प्रमुख आचार्य हैं । बादरायण ने ब्रह्मसूत्र में समस्त उपनिषदों का सार संग्रहीत किया है । अतः ब्रह्मसूत्र का दूसरा नाम वेदान्त सूत्र भी है। ब्रह्मसूत्र पर शंकर, भास्कर, रामानुज आदि अनेक आचार्यों ने भाष्य की रचना की है । शंकराचार्य ने अपने भाष्य में अद्वैत ब्रह्म की सिद्धि की है। संसार के सब पदार्थ मायिक हैं । अर्थात् माया के कारण ही उनकी सत्ता प्रतीत होती है। जब तक ब्रह्म का ज्ञान नहीं होता है तभी तक संसार की सत्ता है। जैसे किसी पुरुष को रस्सी में सर्प का ज्ञान हो जाता है किन्तु वह ज्ञान तभी तक रहता है जब तक कि 'यह रस्सी है, सर्प नहीं, इस प्रकार का सम्यग् ज्ञान नहीं होता । जिस प्रकार रस्सी में सर्प की कल्पित सत्ता रस्सी के विषय में सम्यग् ज्ञान होने तक ही रहती है, उसी प्रकार ब्रह्मज्ञान न होने तक ही संसार की सत्ता है और ब्रह्मज्ञान होते ही यह जीव अपनी पृथक् सत्ता को खोकर ब्रह्म में लीन हो जाता है । यही जीव की मुक्ति है। रामानुज के अनुसार मोक्ष अवस्था में यद्यपि जीव ब्रह्म में मिल जाता है फिर भी वह अपने अस्तित्व को खो नहीं देता किन्तु उसका पृथक् अस्तित्व बना रहता है। वेदान्तियों ने मोक्ष के विषय में कहा है
__ आनन्दं ब्रह्मणो रूपं तच्च मोक्षेऽभिव्यज्यते ।
ब्रह्म या आत्मा का स्वरूप आनंद है और मोक्ष में उस आनन्द की अभिव्यक्ति होती है।
मोक्ष में आनन्द की अभिव्यक्ति मानना तो ठीक है किन्तु आत्मा का स्वरूप केवल आनन्द है और उसको प्राप्त करना ही मोक्ष है, ऐसा मानना ठीक नहीं है । प्रात्मा का स्वरूप केवल आनन्द ही नहीं है किन्तु ज्ञान-दर्शन भी है और मोक्ष में अनन्त सुख की प्राप्ति के साथ ही अनन्त ज्ञानादि की भी प्राप्ति होती है।
चार्वाक दर्शन चार्वाक दर्शन के प्रवर्तक बृहस्पति माने जाते हैं। चार्वाक के जीवन का
1. स्वरूपे चैतन्यमात्रेऽवस्थानं मोक्ष इति । 2. चैतन्यविशेषेऽनन्तज्ञानादिस्वरूपेऽवस्थानस्य मोक्षत्वसाधनात् ।
खं.३ अं. २-३
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org