________________
वैशेषिक मुक्ति की एक विशेषता यह है कि ये लोग मुक्ति में बुद्धि, सुख, दु:ख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार, आत्मा के इन नौ विशेष गुणों का नाश मानते हैं । यद्यपि ज्ञान आदि आत्मा के गुण हैं किन्तु ये गण आत्मा से भिन्न हैं और समवाय सम्बन्ध से आत्मा में रहते हैं। जब तक संसार है तभी तक इन गुणों का आत्मा में सद्भाव रहता है और मोक्ष में इन गणों का पूर्णरूप से अभाव हो जाता है । बुद्धि आदि गुणों का विनाश हो जाने पर भी गुणी आत्मा का विनाश नहीं होता है । क्योंकि गुण और गुणी में अत्यन्त भेद माना गया है । उन दोनों में तादात्म्य सम्बन्ध मानने पर उक्त दोष संभव है।
उक्त मत के अनुसार मुक्ति प्राप्ति का अर्थ है स्वरूप की हानि । इसीलिए श्रीहर्ष ने नैषवचरित में नैयायिक-वैशेषिक मुक्ति का जो उपहास किया है वह विद्वानों के लिए विचारणीय है । श्रीहर्ष ने कहा है
मुक्तये यः शिलात्वाय शास्त्रमूचे सचेतसाम् । गौतमं तमवेक्ष्यैव यथा वित्थ तथैव सः ॥
-नैषधचरित 17175 अर्थात् गौतम ने बुद्धिमान् पुरुषों के लिए ज्ञान सुखादि से रहित शिलारूप मुक्ति का उपदेश दिया है । अत: उनका गौतम यह नाम शब्दत: ही यथार्थ नहीं है किन्तु अर्थत: भी यथार्थ है । वह केवल गौ (बैल) न होकर गौतम (अतिशयेन गौः गौतमः) अर्थात् विशिष्ट बैल हैं।
इसी प्रकार वैष्णव दार्शनिकों ने भी वैशेषिक मुक्ति का उपहास किया है । किसी वैष्णव दार्शनिक ने कहा है
वरं वृन्दावने रम्ये शृगालत्वं वृणोम्यहम् ।
वैशेषिकोक्तमोक्षात्तु सुखलेशविवर्जितात् ॥ स. सि. सं. अर्थात् मुझे शृगाल बनकर वृन्दावन के निकुजों में जीवन बिताना श्रेष्ठ है किन्तु मैं सुख से रहित वैशेषिक मुक्ति पसन्द नहीं करता हूं। वैशेषिक मुक्ति की अपेक्षा वृन्दावन के वन में शृगाल होना इसलिए अच्छा है क्योंकि वहाँ खाने को हरी धास और पीने को ठण्डा पानी तो मिलेगा।
सांख्य दर्शन
सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष के संसर्ग का नाम ही संसार है । जब तक
1. बुध्दयादिविशेषगुणोच्छेदादात्मत्वमात्रेऽवस्थानं मुक्ति: ।-तत्त्वार्थवार्तिक
खं.३ अं. २-३
२५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org