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2 : मरण की विधियाँ
गौतम धर्मशास्त्र में एक सूत्र में मरण की विधियों का बड़े सुन्दर ढंग से आकलन हुआ है । वह सूत्र इस प्रकार है : "प्रायोऽनाशकशस्त्राग्निविषोदकोदबन्धनप्रपतनैश्चेच्छताम् 14/11" इस सूत्र में मरण की निम्न विधियां उल्लिखित हैं :
( 1 ) प्राय : महाप्रस्थान - महायात्रा कर प्राण विसर्जन करना ।
(2) अनाशक : अनशन कर - अन्न-जल का त्याग कर प्राण छोड़ना । (3) शस्त्राघात : शस्त्र से प्राण त्याग करना ।
( 4 ) अग्नि प्रवेश : अग्नि में गिरकर प्राण त्याग करना ।
(5) विष भक्षण : विष खाकर या पीकर प्राण त्याग करना ।
( 6 ) जल-प्रवेश : जल में डूबकर प्राण त्याग करना ।
( 7 ) उद्बन्धन : गले में रज्जु आदि से फांसी लगाकर प्राण त्याग करना । ( 8 ) प्रपतन: पहाड़, वृक्ष, आदि से गिर कर प्राण त्याग करना ।
उक्त सूत्र में "प्रपतनः " के बाद "च" शब्द इस बात का द्योतक है कि मरण के प्रकार अन्य भी बहुत हो सकते हैं । 10 वशिष्ठ स्मृति में निम्न दो विधियों का विशेष उल्लेख है :
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(9) लोष्ट
(10) पाषाण 11
रामायण और महाभारत में जब भी किसी पात्र के सम्मुख प्रतिकूल स्थिति वियोग, निराशा, हार आदि के प्रसंग आये उन्होंने इन्हीं उपायों में से किसी से प्राणत्याग करने को सोचा है ।
रामायण से निम्न घटनाएं दी जा सकती हैं :
(1) सीता राम के साथ वनवास जाने का आग्रह करने लगी । अपने प्राग्रह को बलात् मनवाने के लिए उसने कहा : "यदि आप इस प्रकार दुःख में पड़ी हुई मुझ सेविका को अपने साथ वन में ले जाना नहीं चाहते हैं तो मैं मृत्यु के लिए विष खा लूंगी, आग में कूद पडूंगी अथवा जल में डूब जाऊंगी. 11 क
8. प्रायो महाप्रस्थानम् ( मष्करि भाष्य ) ।
9. अनाशकमभोजनं ( मष्करि भाष्य ) । अनाशकमनशनम्
( याज्ञ. 316 की मिताक्षरा टीका ) ।
10. चकारादन्यैरप्येवंभूतैरात्महनन हेतुभिरिति द्रष्टव्यम् । ( मष्करि भाष्य ) 11. देखिए टि. सं. 5 (क)
11-क. रामायण 2/29/21:
यदि मां दुःखितामेवं वनं नेतुं न चेच्छसि ।
विषमग्निं जलं वाहमास्थास्ये मृत्युकारणात् ॥
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तुलसी प्रज्ञा
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