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(2) सीता के कहने पर भी जब लक्ष्मण सीता को अकेली छोड़ सोने के मृग के शिकार में गए हुए राम की खोज में जाने के लिए तैयार नहीं हुए तब इसे अभिसन्धि समझ कर सीता रोने लगी और बोली : "लक्ष्मण ! मैं श्रीराम से बिछुड़ जाने पर गोदावरी नदी में समा जाऊंगी अथवा गले में फांसी लगा लूंगी अथवा पर्वत के दुर्गम शिखर पर चढ़कर वहां से अपने शरीर को नीचे डाल दूंगी या तीव्र विष पान कर लूंगी अथवा जलती आग में प्रवेश कर जाऊंगी, परन्तु श्री रघुनाथजी के सिवा किसी पुरुष को कदापि स्पर्श नहीं करूंगी । " 11 ख
( 3 ) सीता का पता न चलने से हनुमानजी सोचने लगे : "यदि यह बात जाकर मैंने कही तो अपने राजा के शोक से पीड़ित हो सब वानर अपने पुत्र, स्त्री और मानवों सहित पर्वतों के शिखरों से नीचे सम अथवा विषम स्थानों से गिर कर प्राण दे देंगे अथवा सारे विष पी लेंगे या फांसी लगा लेंगे या जलती आग में प्रवेश कर जायेंगे, उपवास करने लगेंगे अथवा अपने ही शरीर में छुरा भोंक लेंगे। ग
(4) भरत ने कैकेयी की भर्त्सना करते हुए कहा : "अब तू जलती आग में प्रवेश कर जा अथवा दण्डकारण्य में चली जा अथवा गले में रस्सी बांध कर प्राण दे दे | इसके सिवा तेरे लिए दूसरी कोई गति नहीं है । घ
(5) सीता प्राण त्याग के लिए उद्यत हो कहने लगी : "मैं शीघ्र ही किसी तीखे शस्त्र अथवा विष से अपने प्राण त्याग दूंगी, परन्तु राक्षस के यहाँ से मुझे कोई विष या शस्त्र देनेवाला भी नहीं है । सीता ने सोचा : चोटी पकड़ कर चोटी से फांसी लगाकर यम लोक में पहुंच जाऊंगी | च
11 ख. गोदावरी प्रवेक्ष्यामि हीना रामेण लक्ष्मण आबन्धिष्येऽथवा त्यक्ष्ये विषमे देहमात्मनः ॥ पिबामि वा विषं तीक्ष्णं प्रवेक्ष्यामि हुताशनम् ।
न त्वहं राघवादन्यं कदापि पुरुषं स्पृशे ।। रामायण 3/45/36/37 11 ग. रामायण 5/13/35-36
सपुत्रदाराः सामात्या भर्तृव्यसनपीडिता: । शैलाग्र ेभ्यः पतिष्यन्ति समेषु विषमेषु च । विषमुबन्धनं वापि प्रवेशं ज्वलनस्य वा । उपवासमथो शस्त्र प्रचरिष्यन्ति वानराः ॥ 11 घ. रामायण 2/74/33 :
सावन प्रविश वा स्वयं वा विश दण्डकान् । रज्जु बद्ध वाथवा कण्ठे न हि तेऽन्यत् परायणाम् ॥ 11 च. रामायण 52/8/6/17:
संजीवितं क्षिप्रमहं त्यजेयं विषेण शस्त्र ेण शितेन वापि । विषस्य दाता न तु मेsस्ति कश्चित् शस्त्रस्य वा वेश्मनि राक्षसस्य ॥ शोकाभितप्ता बहुधा विचिन्त्य सीताथ वेणीग्रथनं गृहीत्वा । उद्बध्य वेण्युद्ग्रथनेन शीघ्र महं गमिष्यामि यमस्य मूलम् ॥
खं. ३. २-३
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