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__(8) अग्नि में जल कर मरण प्राप्त करने का कुछ घटनाओं का वर्णन गमायण में इस प्रकार मिलता है :
(क) शरभंग मुनि राम से बोले : "तात ! दो घड़ी यहीं ठहरिये और जब तक पुरानी केंचुल का त्याग करने वाले सर्प की भांति मैं अपने जराजीर्ण अंगों का त्याग न कर दू तब तक मेरी ही ओर देखिए।" यह कह शरभंग मुनि ने अग्नि की स्थापना करके उसे प्रज्वलित किया और मन्त्रोच्चारपूर्वक घी की आहुति देकर वे स्वयं भी उस अग्नि में प्रविष्ट हो गए । अग्नि ने उनके रोमादि सबको जला कर भस्म कर दिया। अब मुनि अग्नितुल्य तेजस्वी कुमार के रूप में प्रकट हो गए और उस अग्नि राशि के ऊपर उठकर बड़ी शोभा पाने लगे । वे अनेक लोको को लांघकर ब्रह्मलोक जा पहुंचे 199
(ख) शबरी ने मतंगवन का परिचय देते हुए राम से कहा था--"राम ! यहीं मेरे भी गुरुजन निवास करते थे। इसी स्थान पर उन्होंने गायत्री-मन्त्र के जप से विशुद्ध हुए अपने देहरूपी पंजर को मन्त्रोच्चारण पूर्वक अग्नि में होम दिया था।''100 इसके बाद वह पुन: बोली : "राम ! आपने सारा वन देख लिया। अब मैं आपकी आज्ञा ले कर इस देह का परित्याग करना चाहती हूं।"101 राम ने कहा"तुमने मेरा बड़ा सत्कार किया। अब तुम अभीष्ट लोक की यात्रा करो" राम के इस प्रकार आज्ञा देने पर शबरी ने अपने को आग में होम कर प्रज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी शरीर प्राप्त किया । और स्वर्गलोक को चली गई।102
(७) धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती ने अग्नि में जल कर अपना प्राणान्त किया था, इसका उल्लेख महाभारत के आश्रमवासिक पर्व में है। संक्षेप में उसका सार यह हैः पाण्डवों के वन से लौटने के बाद धृतराष्ट्र, गान्धारी, कुन्ती आदि के साथ कुरुक्षेत्र से गंगाद्वार (हरिद्वार) चले गए (37/10/11) । तपस्या के धनी धृतराष्ट्र ने वहां
99. रामायण: 3/5/38-42 :
ततोऽग्निं स समाधाय हुत्वा चाऽनेन मन्त्रवत् । शरभंगो महातेजाः प्रविवेश हुताशनम् ॥ स लोकानाहिताग्नीनामृषीणां च महात्मनाम् ।
देवानां च व्यतिक्रम्य ब्रह्मलोकं व्यरोहत ॥ 100. रामायण: 3/74/27 : .
तदिच्छाम्यभ्यनुज्ञानात्त्यक्ष्याम्येतत् कलेवरम् । 101. रामायण: 3/74/33 :
अनुज्ञातात्तुरामेणहुत्वाऽऽत्मानं हुताशने । 102. रामायण 3/74/33 :
ज्वलत्पावकसंकाशा-स्वर्गमेव जगाम है।
खं. ३ अं. २-३
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