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( 3 ) लघु यम 20 : "जो मनुष्य रज्जु आदि के उपक्रम से अपनी घात करे और यदि वह मर जाय तो उसकी मृत देह पर विष्ठादि अमेध्य वस्तुओं का लेप करे 127
( 4 ) याज्ञवल्क्य 3 / 6 : " आत्मत्यागी अशौच और उदकक्रिया के भाजनपात्र नहीं होते । "28
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( 5 ) विष्णु 22 / 55 : "आत्मघाती व्यक्तियों के लिए अशौच रखना और उन्हें जलांजलि देना उचित नहीं । " 29
( 6 ) उषन् स्मृति 7 / 2 : "जो अग्नि, विषादि से अपनी घात करता है उसका दाह नहीं होता और न उदकक्रिया होती है | 30
कूर्मपुराण । उत्त. 23/73 और आपस्तम्ब में भी ऐसा ही कहा गया है | 31 (7) संवर्त / 172 / : “ अपना श्रेय चाहने वाला सत्पुरुष आत्मघाती के लिए अश्रुपात न करे | 32
( 8 ) अग्नि पुराण 157/32 : गिरि-प्रपतन, अग्नि, फांसी, जल, शस्त्र, विद्युत आदि से मृत आत्मघातियों का प्रशोच नहीं होता । " 33
(9) संवर्त 175 : "जो आत्मघाती हैं उनके प्रति की हुई उदकक्रिया, पिण्डदान और श्राद्ध उन तक नहीं पहुंचते । रास्ते में ही राक्षस सब लुप्त कर देते हैं | 24 यह बात अग्निपुराण 159/3 में भी कही गई है ।
27. आत्मा संघातयेद्यस्तु रज्ज्वादिभिरुपक्रमो ।
मृतोऽमेध्येन लेप्तव्यो जीवितो द्विशतं दमः ॥ 28. सुराप्यात्मत्यागिन्यो नाशौचोदकभाजना: । 29. आत्मत्यागिनः पतिताश्च नाशोचोदकभाजः । 30. व्यापादयेत्तथात्मानं स्वयं योऽग्निविषादिभिः ।
विहितं तस्य नाशौचं न च स्यादुदकादिकम् ॥ 31. ( क ) विहितं तस्य नाशौचं नाग्निर्नाप्युदकादिकम् । (ख) विहितं तस्य नाशोचं नापि कार्योदकक्रिया | याज्ञ. 3/6 की अपरार्क टीका से
32. गोभिर्विप्रहते चैव तथा चैवात्मघातिनि ।
ना प्रपातनं कार्यं सद्भिः श्र ेयोऽनुकांक्षिभिः । 33. भृग्वग्निपाश काम्भोभिर्मृतानामात्मघातिनाम् ।
पतितानां च नाऽऽशौचं विद्युच्छस्र हताश्च ये । 34. महापातकीनांश्चैव तया चैवात्मघातिनाम् ।
उदकं पिण्डदानं च श्राद्ध चैव तु यत् कृतम् ॥ नोपतिष्ठति तत् सर्वं राक्षसैविप्रलुप्यते । 35. तेषां दानं जलं चान्नं गगने तत्प्रतीयते ।
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तुलसी प्रज्ञा
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