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(10) शंख लिखित, कूर्म पुराण, वामनपुराण88 में कहा है : “शस्त्र, अनशन, अग्नि, उद्बन्धन, रज्जु, गिरि-पतन, जल, विष, प्रमापण-महाप्रस्थान आदि द्वारा आत्मघात कर मरने पर सद्य शौच होता है ।
(11) आत्मघात करने वाले द्वारा संकल्पित कोई काम दूसरा उसके नाम से न करे । उसका कोई प्रौर्वदेहिक कर्म न करे। उसके वंश का कोई व्यक्ति उसका नाम न ले । वह अत्यन्त पापिष्ठ और घोर नरकस्थ होता है। उसके लिए कुछ करना अथवा उसका नाम लेना यह सब अत्यन्त भयावह है ।क
जो आत्मघातक की अशौच क्रिया करता है उसके विषय में लिखा है :
(1) वशिष्ठ 23/13/14 में कहा है : जो ब्राह्मण स्नेहवश आत्मघाती की प्रेतक्रिया करता है वह तप्तकृच्छ्र सहित चान्द्रायण व्रत करे ।39
(2) संवर्त 173-174 : "जो आत्मघाती व्यक्ति के शव को वहन करता है अथवा उसका दाह करता है अथवा उसकी उदकक्रिया करता है वह चान्द्रायण व्रत करे । जो ऐसे व्यक्ति के शव का स्पर्श करता है वह कृच्छ व्रत करे और जो उसके वस्त्रका स्पर्श करे वह एक दिन का उपवास करे ।"40
(3) पराशर स्मृति (414-7) में आत्मघाती की मृतदेह का स्पर्श करनेवाले, वहन करने वाले, अग्नि-संस्कार करने वाले, उसके गले की डोरी का छेदन करनेवाले एवं अनुगमन करने वाले की शुद्धि के लिए तप्तकृच्छ तप का विधान किया है ।
(4) जो इनके शव का दाह करता है, स्नान कराता है, अलंकृत करता है, उनके लिए अश्रुपात करता है, उनके शव का अतुगमन करता है, उनकी शुद्धि दो तप्त
36.. अथ शस्त्रानाशकाग्निरज्जुभृगुजलविषप्रमापणेष्वेवमेव । हरलता पृ. 113 37. अग्निमरुत्प्रपतने वीतध्वन्यप्यनाशके ।
गोब्राह्मणार्थ संन्यस्ते सद्यः शौचं विधीयते । 38. विषबन्धनशस्त्राम्बुवह्निपातमतेषु च । बालं प्रवाजिसंन्यासे देशान्तर मते तथा । ___सद्यः शौचं भवेद्वीर: तच्चाप्युक्तं चतुर्विधः ॥ 38क. तेनोद्दिष्टं न चैवान्यः कार्यमस्यौवंदैहिकम् ।
न च नामापि कर्तव्यं तद्वशस्य तदीयकम् ।। अत्यन्तनरकस्थस्य तस्य पापीयसोऽधिकम् ।। कारणं कीर्तनं नाम सर्वं चैव भयावहम् ।।
(मनु. 5/88 के मेधातिथि भाष्य में उद्ध त) 39. अथाप्युदाहरन्ति । य आत्मत्यागिनः कुर्यात्स्नेहात्प्रेतक्रियां द्विजः ।
स तप्तकृच्छसहितं चरेच्चान्द्रायणव्रतम् ।। 40 एषामन्यतमं प्रेतं यो वहेत् तदहेतवे ।
तथोदकक्रियां कृत्वा चरेच्वान्द्रायणव्रतम् ।। तच्छवं केवलं स्पृष्ट्वा वस्त्रं वा केवलं यदि । पूर्वकृच्छापहारी स्यादेकाहक्षपणं तथा ।।
खं. ३ अं. २-३
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