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आपस्तम्ब के अभिमत पर टीका करते हुए माधव कहते हैं : “आपस्तम्ब ने अग्नि आदि से आत्मघात करने वाले के लिए जो अशौच न रखने की बात कही है वह बुद्धिपूर्वक किए हुए मरण से सम्बन्धित है जैसा कि गौतम द्वारा प्रयुक्त "इच्छताम्" इच्छापूर्वक शब्द से स्पष्ट है ।"58
याज्ञवल्क्य (316)59 की मिताक्षरा व्याख्या में कहा गया है : “जो बुद्धिपूर्वक आत्मघात करता है उसी का अशौच आदि अविहित है क्योंकि गौतम के वचन में इच्छापूर्वक शब्द है।''8.
याज्ञवल्क्य के कथन--"हतानां नृगोविगैरन्वक्षं चात्मघातिनाम् "की व्याख्या करते हुए मिताक्षरा में कहा है : “जो विष, उद्बन्धनादि से बुद्धिपूर्वक आत्मा का व्यापाद करते हैं वे आत्मघाती हैं। उन्हीं का सद्य शौच होता है। 161
इस विवेचन से फलित पांचवां अध्याहार है-आत्मघात का इच्छापूर्वक या बुद्धिपूर्वक होना।
(6) मनु० (5/81)62 की कुल्लक टीका में कहा है : “जो अशास्त्रीय विधि से विष, फांसी आदि द्वारा स्वेच्छा से अपने जीवन का अन्त करता है वैसे प्रात्म-त्यागी की उदक-क्रिया नहीं करनी चाहिए।"63 मेधातिथि का अभिप्राय भी ऐसा ही है ।
__ याज्ञवल्क्य के उपर्युक्त कथन की टीका करते हुए अपरार्क कहते हैं : “अविहित आत्म-त्याग करनेवाले का सद्य शौच होता है ।"65 इसी सूत्र पर माधव कहते हैं :
57. व्यापादयेद् य आत्मानं स्वयमग्न्युदकादिभिः ।
विहितं तस्य नाशौचं नापि कार्योदकक्रिया । 58. एतं च बुद्धिपूर्वकमरणविषयकम् । अतएव गौतमः । 'गो ब्राह्मणहतानामन्वक्षं ।
राजक्रोधाच्चश्वयुद्धे । प्रायोऽनाशनशस्त्राग्निविषोदकोद्बन्धनप्रपतनैश्चेच्छताम्
इति ।" (पराशर 3/10) की माधवटीका) 59. मूल पाठ के लिए देखिए टि० सं० 28 । 60. एतच्च बुद्धिपूर्वविषयम् ..... इच्छापूर्वमात्महनन विषयम् गौतमवचनेनेच्छापूर्वक
मेवोदकेन हतस्याशौचादि निषेधस्योक्तत्वात् । 61 विषोद्बन्धनादिभिः बुद्धिपूर्वमात्मानं ये व्यापादयन्ति ते आत्मघातिनः ......
तत्संबन्धिनां चान्वक्षम् .. सद्य: शौचमित्यर्थः । 62. पाठ के लिए देखें टि० सं० 25 ।
अशास्त्रीयविषोद्बन्धनादिना कामतश्च कृतजीवितत्यागिनाम् उदकत्रिया न
कर्तव्या । 64. आत्मनस्त्यागिनां पुरुषाणामायुषोऽक्षये स्वेच्छया शरीरं त्यजन्ति ।
(मनु० 5/88 का मेधातिथि भाष्य) 65. अविहितात्मत्यागकारिणां चोपरमेऽन्वक्षं प्रत्यक्षं दृश्यमाने तच्छरीरे तत्
सपिण्डनामशौचमित्यर्थः ।
खं. ३ अं. २-३
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