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आगम-अनुसंधान मंगलवाद : नमस्कार महामंत्र के पाठ-भेद
मुनि नथमल
उपोद्घात
कुछ लोग परम्परावादी होते हैं। वे परम्परा से प्राप्त अपने शास्त्रों को शाश्वत मानते चले जाते हैं। उन्हें उन शास्त्रों के पाठ और अर्थ में किसी अनुसंधान की अपेक्षा अनुभूत नहीं होती। किन्तु अनुसंधित्सु वर्ग इस बात को स्वीकार नहीं करता । वह शास्त्र के पाठ और अर्थ-दोनों का अनुसंधान करता है । जो कुछ नया उपलब्ध होता है, उसे विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत भी करता है।
हमने आचार्यश्री तुलसी के वाचना-प्रमुखत्व में जैन-प्रागमों के अनुसंधान का कार्य प्रारंभ किया। एक ओर हम पाठ का अनुसंधान कर रहे हैं तो दूसरी ओर अर्थ के अनुसंधान का कार्य भी चलता है। आगमों के सूत्र पाठ की अनेक वाचनाएँ हैं और पन्द्रह सौ वर्ष की इस लम्बी अवधि में, अनेक कारणों से उनके अनेक पाठभेद हो गए हैं । अर्थभेद उनसे भी अधिक मिलता है । अनुसंधान का उद्देश्य है मूल पाठ और मूल अर्थ की खोज । अनेक प्रकार के पाठों और अर्थों में से मूल पाठ और अर्थ को खोज निकालना कोई सरल कार्य नहीं है। फिर भी मनुष्य प्रयत्न करता है और कठिन कार्य को सरल बनाने की उसमें भावना सन्निहित होती है । हमारा प्रयत्न और हमारी भावना मूल के अनुसंधान की दृष्टि से प्रेरित है। इसीलिए इस कार्य के प्रति हमारा दृष्टिकोण सत्य के प्रति समर्पित है, किसी सम्प्रदाय या किसी विशेष विचार के प्रति समर्पित नहीं है । मंगलवाद
दार्शनिक युग में शास्त्र के प्रारंभ में मंगल, अभिधेय, संबंध और प्रयोजन
खं. ३ अं. २-३
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