________________
है । इस अर्थभेद के होने पर 'अरहंत' और 'अरिहंत' ये दोनों एक ही धातु के दो रूपों में निष्पन्न दो शब्द नहीं होते किन्तु भिन्न-भिन्न अर्थ वाले दो शब्द बन जाते हैं।
आवश्यक सूत्र के नियुक्तिकार ने अरिहंत, अरहंत के तीन अर्थ किए हैं1. पूजा की अर्हता होने के कारण अरहंत ।। 2. अरि का हनन करने के कारण अरिहंत । 3. रज-कर्म का हनन करने के कारण अरिहंत । वीरसेनाचार्य ने 'अरिहंताणं' पद के चार अर्थ किए हैं1. अरि का हनन करने के कारण अरिहंत । 2. रज का हनन करने के कारण अरिहंत । 3. रहस्य के प्रभाव से अरिहंत। 4. अतिशय पूजा की अर्हता होने के कारण अरिहंत ।'
प्रथम तीन अर्थ अरि-+हन्ता-इन दो पदों के आधार पर किए गए है और चौथा अर्थ अहं, धातु के 'अरहंता' पद के आधार पर किया गया है।
भाषा की दृष्टि से 'नमो' और णमो' तथा 'अरहंताणं' तथा 'अरिहंताणंइन दो में मात्र रूपभेद है, किन्तु मन्त्रशास्त्रीय दृष्टि से 'न' और 'ण' के उच्चारण की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रिया होती है । 'ण' मूर्धन्य वर्ण है। उसके उच्चारण से जो घर्षण होता है, जो मस्तिष्कीय प्राण-विद्युत् का संचार होता है, वह 'न' के उच्चारण से नहीं होता।
अरहताणं के अकार और अरिहंताणं के इकार का भी मंत्रशास्त्रीय अर्थ एक नहीं है। मंत्रशास्त्र के अनुसार अकार का वर्ण स्वणिम और स्वाद नमकीन होता है तथा इकार का वर्ण स्वणिम और स्वाद कषला होता है ।
प्रकार पुल्लिम और इकार नपुंसकलिंग होता है।
1. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 921 :
अरिहंति वंदणनमंसणाणि अरिहंति पूअसक्कारे ।
सिद्धिगमणं च अरिहा अरहंता तेण वुच्चंति ।। 2. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 922 :
देवासुरमणुएसु अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा ।
अरिणो रयं च हंता अरहंता तेण वुच्चंति ॥ 3. धवला, षट्खंडागम 1-1-1, पृष्ठ 43-45 :
अरिहननादरिहन्ता ।...रजोहननाद् वा अरिहन्ता ।... .
रहस्याभावाद् वा अरिहन्ता।...अतिशयपूजार्हत्वात् वार्हन्त ।। 4. विद्यानुशासन, योगशास्त्र पृष्ठ 90, 91
खं. ३ अ. २-३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org