Book Title: Tulsi Prajna 1977 04
Author(s): Shreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 47
________________ (i) एक द्रव्य है। (ii) वह किसी एक स्वरूप से है। (iii) उसकी उत्पत्ति का कोई एक साधन भी है। (iv) उसका एक अपादान भी है। (v) उसका किसी से संबंध भी है । (vi) उसका कोई एक अधिकरण भी है । (vii) उसका कोई एक काल भी है। क्रमवर्ती पर्यायों में वर्तमान पर्याय निश्चित होता है, किन्तु आने वाले पर्याय की संभावना और अनिश्चितता के लिए कोई नियम नहीं बनाया जा सकता-अमुक पर्याय के बाद अमुक पर्याय ही होगा, ऐसी निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। इस संदर्भ में हाइजनबर्ग के अनिश्चितता के सिद्धान्त (Principle of uncertainty) का मूल्यांकन किया जा सकता है। ___4. स्याद्वाद के द्वारा-निकट, छोटा-बड़ा आदि आपेक्षिक पर्यायों की हो व्याख्या नहीं की जाती, किन्तु द्रव्य के स्वाभाविक पर्यायों की भी उससे व्याख्या की जा सकती है । नित्यता और अनित्यता स्वाभाविक पर्याय हैं। स्वभाव में विरोध की प्रतीति होती है । स्वभाव में घिरोध नहीं होता, इसलिए सापेक्षता के द्वारा इनके विरोध का परिहार किया जाता है। 5. स्याद्वाद के संदर्भ में वैज्ञानिक सापेक्षवाद का अध्ययन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। कुछ सांख्यिकी विशेषज्ञों ने स्याद्वाद की सप्तभंगी को सांख्यिकी (Statistics) सिद्धान्त के आधार रूप में प्रस्तुत किया है। इस विषय में प्रो० P.C. Mahalanobis का लेख बहुत मननीय है। उसका कुछ अंश इस प्रकार है : I should now like to make some brief observations of my own on the connexion between Indian-Jaina views and the foundations of statistical theory. I have already pointed out that the fourth category of syādvāda, namely, avaktavya or the "indeterminate" is a synthesis of three earlier categories of (i) assertion (“it is"), (2) negation (“it is not"), and (3) assertion and negation in succession. The fourth category of syādvada, वं. ३ अं. २-३ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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