Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१४] जाएगा। एक दिन उसी ब्राह्मण पुत्र के नाम की गुटिका उठ गई। गुटिका में यम के आमन्त्रण रूप शिखी नाम लिखा था। जब यह बात शिखी की माँ ने सुनी तो वह 'हा पुत्र हा पुत्र' करती हुई इस भाँति रोने लगी कि सभी रो पड़े। ब्राह्मण के घर के पास एक भूतों का मकान था। उसमें कई भूत रहते थे। ब्राह्मणी का क्रन्दन सुनकर उनका हृदय द्रवित हो उठा। वे आकर ब्राह्मणी से बोले, 'तुम रोओ मत, शान्त हो जाओ। अपने पुत्र को राक्षस के पास जाने दो। हम उसे राक्षस के पास से पुन: तुम्हारे पास ले आएँगे। उससे राज्य का नियम भी भङ्ग नहीं होगा और तुम्हारा पुत्र भी नहीं मरेगा।' भूतों की बात समाप्त भी नहीं हो पाई कि राज्य के रक्षकगण बकरे की भाँति खींचकर उसके पुत्र को ले गए। रक्षकों ने उसे राक्षस के हाथ में ज्यों ही सौंपा भूतों ने उसे पकड़ लिया और उसकी माँ को ले जाकर दे दिया। न जाने कौन सी घटना घट जाए इस भय से उसकी माँ उसे एक पर्वत गुफा में छिपा आई। वहाँ एक अजगर रहता था वह उस बालक को निगल गया। अतः केवल स्थान परिवर्तन द्वारा विपद-निवारण नहीं हो सकता। इस लिए यह युक्ति मुझे नहीं झुंची। निकाचित कर्म भी तप द्वारा विनष्ट किए जा सकते हैं एतदर्थ आओ हम सब तप करें।
(श्लोक २०८-२१९) 'चतुर्थ मन्त्री बोला, 'इस व्यक्ति ने यह भविष्य वाणी की है कि वज्रपात पोतनपति पर होगा, श्रीविजय पर होगा यह तो नहीं कहा है। अतः सात दिनों के लिए यदि अन्य किसी को राजा बना दें तो कैसा रहे ? फिर तो यदि वज्रपात हुआ भी तो उसी पर होगा। इस भाँति विपदा भी टल जाएगी और महाराज की रक्षा भी हो जाएगी।'
(श्लोक २२०-२२१) 'यह सुनकर वह नैमित्तिक उस मन्त्री से बोला, 'आपका मतिज्ञान मेरे नैमित्तिक ज्ञान से अधिक प्रखर है। मैं तो कहता हूँ कि इस दुर्घटना को रोकने के लिए आप ही सात दिनों के लिए राजा बन जाएँ और राजा ये सात दिन जिनालय में जिन पूजा करते हुए व्यतीत करें।
__ (श्लोक २२२-२२३) 'तब मैं बोला,-'एक निरपराध को राजा बनाकर विनष्ट कर दिया जाए मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता। इन्द्र से लेकर