Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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के लिए धातकीखण्ड स्थित पश्चिम विदेह की सीतोदा नदी के तट पर स्थित सूत्र विजय के खड्गपुर नगर में गए। अर्हत् की वन्दना कर उन्होंने वहां संसार-सागर को उत्तरण करने में जहाजसी उनकी देशना सुनी। संसार-दावानल को निर्वापण करने वाली उनकी देशना सुनकर और उन्हें वन्दना कर वे स्व-नगरी को लौटने को यात्रायित हुए। जाने के समय उनके विमान की गति समुद्र स्थित शर वन से जैसे जहाज की गति अवरुद्ध हो जाती है वैसे ही अवरुद्ध हो गई।
। (श्लोक २२०-२२४) _ 'मेरे विमान की गति किसके द्वारा रुद्ध हुई है यह जानने को उन्होंने नीचे देखा और मुझे वहां खड़े देखा। क्रुद्ध होकर उन्होंने मुझे उठा लेना चाहा; किन्तु मैंने उन्हें बाएँ हाथ से पकड़ लिया। सिंह द्वारा पकड़ा गया हाथी जैसे चिल्ला उठता है वैसे ही वे चिल्ला उठे। यह देखकर उनकी पत्नी और अनुचरों ने मुझसे उनकी सुरक्षा चाही। मैंने उन्हें जब मुक्त कर दिया तो उन्होंने इस भूतवाहिनी की सृष्टि कर उस संगीतानुष्ठान का आयोजन किया है।'
(श्लोक २२५-२२८) प्रियमित्रा ने पुनः पूछा-'देव, इन्होंने पूर्व जन्म में ऐसा क्या किया था जो इस जन्म में ऐसी ऋद्धि के अधिकारी बने हैं ?'
(श्लोक २२९) मेघरथ बोले-'देवी, पुष्करार्द्ध के पूर्व भरत में सिंहपुर नामक एक नगर है। वहां उच्चकुलजात राजगुप्त रहते थे। दारिद्रय के कारण वे अन्य के यहां काम कर अपनी जीविका का निर्वाह करते थे। शंखिका नामक उनकी एक पत्नी थी। वह जिस प्रकार उनके अनुगत थी वैसी ही धर्म के प्रति श्रद्धाशील थी। वह भी अन्य के घर काम करती थी।
(श्लोक २३०-२३२) _ 'एक दिन फलों के लिए वे दोनों वृक्षों से शोभित सिंहगिरि पर्वत पर गए। इधर-उधर फलों की खोज करते हुए उन्होंने मुनि सर्वगुप्त को देखा। उस समय वे देशना दे रहे थे। विद्याधर सभा में उपविष्ट उन मुनि के पास जाकर उन्हें वन्दना कर वे भी वहां बैठ गए । मुनि ने उनके लिए विशेष रूप से धर्म का उपदेश दिया । कारण, महान् व्यक्ति दरिद्र के प्रति विशेष करुणार्द्र होते हैं।'
(श्लोक २३३-२३६)