Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 205
________________ १९६] प्रकार वहाँ के मंत्री, योग्य राजा का अनुसन्धान करने लगे। देवऋद्धि सहित वही देव उस समय आलोक पूज की भाँति आकाश में स्थित होकर उन्हें बोला, हे राज्य के मंत्री, उपदेशक और सामन्तगण सुनो, सुनो, आपके राजा अपुत्रक अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हो गए हैं । इसलिए आप योग्य राज्याधिकारी खोज रहे हैं । आप लोगों के शुभ भाग्योदय से आपकी चिन्ता दूर करने के लिए मैं हरिवर्ष से आप लोगों पर शासन करने में समर्थ युगलिक हरि और हरिणी को ले आया हूं। ये पति-पत्नी हैं । इनके खाद्य के लिए मैं यह कल्पवृक्ष भी ले आया हूं। श्रीवत्स, मत्स्य, कुम्भ, वज्र और अंकुश चिह्न से युक्त कमलनयन हरि तुम लोगों का राजा बने । इन्हें कल्पवृक्ष के फल और पशु-पक्षियों का मांस खिलाना और मदिरा पान करवाते रहना। (श्लोक ८९-९७) ___ 'ऐसा ही होगा' कहते हुए उन्होंते यह बात स्वीकार कर ली और उन्हें रथ में बैठाकर राजमहल ले गए । वहाँ सामन्तों ने हरि को राज्य सिंहासन पर बैठाया । पुरोहित, भाट और गायकों ने मंगलगान किया। उस देव ने स्व-शक्ति से उनका आयुष्य कम कर दिया और ५०० धनुष की उच्चता कम कर दी । हरि भगवान शीतलनाथ स्वामी के तीर्थकाल में राजा हुए थे और उनसे पृथ्वी पर हरिवंश का प्रवर्तन हुआ। (श्लोक ९८-१०१) हरि ने समुद्र-मेखला पृथ्वी को जीत लिया और श्री जैसी सुन्दरी अनेक राजकन्याओं से विवाह किया। कुछ दिनों पश्चात् हरि और हरिणी के पृथ्वीपति नामक एक वृषस्कन्ध पुत्र हुआ । मांसादि आहार और मदिरा पानादि पाप के कारण हरि और हरिणी की मृत्यु हो गयी और उनका पुत्र पृथ्वीपति राजा बना। बहुत दिनों तक राज्य करने के पश्चात् अपने पुत्र महागिरि को सिंहासन पर बैठाकर तपस्या करते हुए मृत्यु के पश्चात् उसने स्वर्ग गमन किया। महागिरि ने भी अपने पुत्र हिमगिरि को सिंहासन पर बैठाकर दीक्षा ग्रहण कर ली और मृत्यु के पश्चात् मोक्ष प्राप्त किया। हिमगिरि ने अपने पुत्र वसुगिरि को सिंहासन पर बैठाकर श्रमण दीक्षा ग्रहण कर ली और मृत्यु पश्चात मोक्ष गए। वसुगिरि भी स्व-पून गिरि को सिंहासन पर बैठाकर दीक्षित हो गए और कर्मक्षय कर मृत्यु के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त किया। गिरि अपने

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