Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२१५ हस्तिनापुर आए। मन्त्री नमूची को जब ज्ञात हुआ कि आचार्य आए हैं तो पूर्व वैर का बदला लेने के लिए महापद्म को जाकर बोला-'आप मुझे जो वर देना चाह रहे थे वह आज दीजिए।' आर्यों द्वारा दी गई प्रतिश्रुति बन्धक रखे धन की तरह सुरक्षित रहती है। राजा बोले- 'बोलिए मन्त्रीवर, आपको क्या वर दू?' नमूची बोला-'मैं एक यज्ञ करना चाहता हूं वह यज्ञ जब तक समाप्त नहीं हो जाता है तब तक आपका राज्य मुझे दें।' प्रतिश्रति की रक्षा के लिए महापद्म ने नमूची को सिंहासन पर बैठाकर स्वयं अन्तःपुर में चले गए।
(श्लोक १४२-१४५) नमूची नगर का परित्याग कर यज्ञस्थली पर गया और स्वयं को यजमान एवं राजा रूप में प्रतिष्ठित किया; किन्तु उनके मन में मायाचार था। बगुला भगत की तरह वह भीतर से कुछ और था बाहर से कुछ और। उस उत्सव में समस्त प्रजाजन आए । सुव्रत सूरि के श्वेत भिक्षुओं को छोड़कर सभी धर्म सम्प्रदायों के तापस आए। नमूची ने मन ही मन सोचा मेरे प्रति विद्वेष भाव रखने के कारण ही श्वेत साधु नहीं आए। असत् भावना के कारण नमूची इसी बहाने विवाद खड़ा कर सुव्रत मुनि के पास गया और कटक्ति करता हुआ बोला-'चाहे राजा कोई भी हो तपस्वी और साधुओं को उनके पास जाना चाहिए। क्यों कि वे जिस उद्यान और वाटिका में तपस्या करते हैं उसका रक्षक राजा होता है। इस प्रकार वह तपश्चरण के छठे भाग का अधिकारी है; किन्तु तुम अधम धर्मद्वेषी एवं मेरे निन्दक हो। साथ ही राज्य और जनगण के विरोधी हो। अतः अब इस राज्य में अवस्थित नहीं रह सकते । अन्यत्र चले जाओ। तुम्हारा जो कोई भी यहां रहेगा मैं उसकी हत्या करूंगा।' (श्लोक १४६-१५१)
आचार्य सुव्रत बोले-'हम आपके राज्याभिषेक पर इसलिए नहीं गए कि यह हमारे आचार और मर्यादा के विरुद्ध है। हमारे मन में आपके लिए या किसी अन्य के लिए कोई भी दुर्भावना नहीं
(श्लोक १५२-१५३) क्रुद्ध नमूची ने प्रत्युत्तर दिया-'मैं कोई बात सुनना नहीं चाहता। मैं आपको सात दिनों का समय देता हूं। इसके पश्चात् जो यहां रहेगा उसे वही दण्ड दिया जाएगा जो एक दस्यु को दिया