Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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नहीं है। मैं भी आपके साथ ही दीक्षा लेकर आपके पथ पर ही चलूगा।' तब पद्मोत्तर ने महापद्म को बुलवाया और बोले-'पुत्र, तुम सिंहासन ग्रहण करो ताकि मैं दीक्षा ले सकू।' तब महापद्म करबद्ध होकर बोले-'पिताजी, आपके समतुल्य अग्रज विष्णुकुमार के रहते मेरा राज्य ग्रहण करना अनुचित है। राज्यशासन में समर्थ अग्रज विष्णुकुमार को ही आप राज्यभार दें। मैं उनके अनुचर की भांति यूवराज पद ग्रहण करूँगा।' राजा बोले-'मैं तो विष्णकुमार को ही राज्य देना चाहता था; किन्तु वह राज्य नहीं चाहता, वह तो मेरे साथ दीक्षा लेने को तत्पर है।' (श्लोक १२७-१३१)
__ महापद्म निरुत्तर हो गए। तब राजा पद्मोत्तर ने उन्हें सिंहासन पर बैठाया। साथ ही साथ चक्रवर्ती रूप में भी उनका अभिषेक हुआ। राजा पद्मोत्तर और विष्णुकुमार का अभिनिष्क्रमण उत्सव महापद्म द्वारा सम्पन्न होने पर वे दोनों आचार्य सुव्रत के पास जाकर दीक्षित हो गए।
(श्लोक १३२-१३३) महापद्म ने अर्हत बिम्ब सहित मां का रथ नगर के बाहर निकाला। उनके शासन की तरह सभी ने उस बिम्ब का पूजन किया। रथ यात्रा के समय पद्मोत्तर और अन्यान्य साधुओं सहित आचार्य सुव्रत वहां उपस्थित थे। चारित्र सम्पन्न महापद्म ने अपने परिवार के साथ जिन-शासन की प्रभावना की। उन्होंने नगर ग्राम खान एवं पत्तन में कोटि-कोटि रुपए व्यय कर इतने विशाल जिनालय बनवाए मानों पहाड़ ही उठ खड़े हुए हों।
(श्लोक १३४-१३७) गुरु के साथ विचरण एवं महाव्रतों का सद्रूप में पालन करते हुए मुनि पद्मोत्तर ने केवलज्ञान प्राप्त किया और उसका फल मोक्ष भी । मुनि विष्णुकुमार ने भी उग्र तपश्चर्या कर बहुत-सी लब्धियाँ प्राप्त कर लीं। वे मेरु की तरह ऊँचा बनना, गरुड़ की तरह आकाश पथ से जाना, देवों की तरह रूप परिवर्तन कर लेना, कामदेव-सा सुन्दर रूप धारण करना, भाँति-भाँति के आकार धारण करना आदि-आदि लब्धियाँ प्राप्त हो जाने पर भी वे उसका प्रयोग नहीं करते थे । कारण साधुओं को भला इन लब्धियों से क्या प्रयोजन ?
__ (श्लोक १३८-१४१) चातुर्मास के लिए एक दिन आचार्य सुव्रत शिष्यों सहित