Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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जाता है। ऐसा कहकर नमूची स्वगृह चला गया।
(श्लोक १५४-१५५) आचार्य सुव्रत मुनियों से बोले-'ऐसी स्थिति में अब हम लोगों को क्या करना चाहिए ? तुम लोगों का क्या अभिमत है ?'
(श्लोक १५६) ___ एक साधु बोले-'विष्णुकुमार ने छह हजार वर्षों तक तपस्या की है। वे अभी मन्दार पहाड़ पर हैं । वे राजा महापद्म के अग्रज हैं। उनके आदेश से नमूची शान्त हो जाएगा। कारण, वे नमूची और महापद्म के भी स्वामी हैं। अत: जो आकाशगामिनी लब्धि के अधिकारी हैं वे वहां जाकर उन्हें ले आएँ । संघ के कार्य के लिए लब्धि का व्यवहार अनुचित नहीं है।' (श्लोक १५७-१५२)
___एक साधु बोले-'मैं आकाश-पथ से वहां जा सकता हूं; किन्तु लौट नहीं सकता। आप बताएँ मैं क्या करूँ ?' गुरु बोले'विष्णुकुमार निश्चय ही तुम्हें ले आएँगे। इस प्रकार आश्वस्त होकर वह शिष्य गरुड़ की तरह आकाश पथ से क्षण भर में विष्णुकुमार के पास जाकर उपस्थित हो गया। विष्णुकुमार उन्हें देखकर मन ही मन सोचने लगे-मुनि का इतना शीघ्रता से आना संघ के किसी विशेष कार्य को सूचित कर रहा है। अन्यथा चातुर्मास के समय साधु का विहार निषिद्ध है। फिर वे लब्धि का भी इस प्रकार प्रयोग नहीं करते । विष्णुकुमार ऐसा सोच ही रहे थे कि वे साधु उनके निकट गए, उन्हें वन्दना की और अपने आने का कारण बताया । सब कुछ सुनकर विष्णुकुमार क्षणमात्र में ही हस्तिनापुर आए और अपने गुरु को वन्दना की। तदुपरान्त साधुओं द्वारा परिवत होकर वे नमूची की राजसभा में गए । नमूची के अतिरिक्त अन्य सभी राजाओं ने उन्हें वन्दन किया। (श्लोक १६०-१६६)
सबको धर्म लाभ देकर विष्णुकुमार धीर कण्ठ से बोले'राजन्, वर्षा का समय है अतः अभी इन मुनियों को आप यहीं रहने दें। ये स्वयं ही एक स्थान पर अधिक दिन नहीं रहेंगे। अभी वर्षाकाल है। अत्यधिक जीवोत्पत्ति होने के कारण अन्यत्र विहार नहीं कर सकते । हम लोगों जैसे भिक्षाजीवियों का इस वृहत् नगर में रहने से आपकी क्या क्षति हो सकती है ? भरत, आदित्य, सोम आदि सभी राजाओं ने साधुओं का सम्मान किया