Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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गयी । राजा तो कामासक्त थे ही । अतः उसे अन्तःपुर दिया |
में स्थान दे
( श्लोक ५८- ६० )
अब राजा सुमुख वनमाला के साथ उद्यान में, नदी तट पर, सरोवर पर, गिरिशृंग पर बिहार कर यौवन सुख भोग करने लगे । ( श्लोक ६१ )
जुलाहा वीर ने घर आकर जब वनमाला को नहीं देखा तो उसे इधर-उधर खोजने लगा; किन्तु जब वह नहीं मिली तो उसकी अवस्था विक्षिप्त सी हो गयी । मानो वह भूताविष्ट हो गया हो या मदिरा पान किए हो। उसी अवस्था में वह इधर-उधर घूमने लगा । वह धूलधूसरित पुराने मैले कपड़े पहने हुए, रुक्ष- शुष्क केश, दाढ़ी नाखून बढ़े हुए ऐसी अवस्था में 'हाय वनमाला, तुम कहाँ हो ? तुम कहाँ हो ?' चिल्लाता हुआ भटकने लगा । उसे पागल समझ कर शहर के लड़के- बच्चे भी उसके पीछे-पीछे चिल्लाते हुए घूमने लगे । वह कहने लगा- 'वनमाला, तुम एक बार दिख जाओ । तुमने मेरा परित्याग क्यों किया ? मैंने क्या अपराध किया है ? क्या तुम कौतुकवश कहीं छिप तो नहीं गयी हो ? यदि ऐसा ही है तो इतने दिनों तक छिपकर रहना अच्छा नहीं है । कहीं तुम्हारे सौन्दर्य के कारण कोई राक्षस, यक्ष या विद्याधर तो तुम्हें उठाकर नहीं ले गया ?' इस प्रकार वह एक पथ से दूसरे पथ पर, त्रिराहों, चौराहों पर चिल्लाता हुआ दीन दरिद्र-सा घूमने लगा । (श्लोक ६२-६७ ) एक दिन इसी प्रकार चिल्लाता हुआ बन्दर के पीछे-पीछे जैसे बच्चों का झुण्ड चलता है उसी प्रकार बालकों द्वारा अनुस्यूत होता राजमहल के चौराहे पर पहुंच गया । यज्ञस्थल परित्यक्त बासी माला पहने पिशाच जैसे उसे देखकर राजमहल के कर्मचारियों ने उसे घेर लिया। वहां का कोलाहल तालियों की ध्वनि सहित अन्तःपुर में अवस्थित राजा सुमुख के कानों में पहुंचा । क्या हो रहा है देखने के लिए राजा वनमाला सहित चौराहे पर आए । जब उन्होंने वीर को उसके उस परिवर्तित रूप में देखा - धूलिमय वस्त्र, शून्यमना, जनता द्वारा प्रताड़ित और 'वनमाला वनमाला' तुम कहाँ हो की चीत्कार सुनी तो उसके मन में अनुशोचना जाग पड़ी । वे सोचने लगे - व्याध की भाँति हमने कैसा निष्ठुर कार्य किया है ? उस निश्छल को हमने प्रताड़ित किया है । जो