Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१९२] में निमग्न राजा को जरा भी आनन्द देने में समर्थ नहीं हुए । मन्त्री सुमति राजा के मनोभावों को जानकर भी नहीं जानने का भान कर भाराक्रान्त हृदय से पूछने लगे—'स्वामिन्, किसी मानसिक विक्षोभ या शत्रुकृत उद्वेग से आप का मन विषण्ण हुआ है ? कारण इसके अतिरिक्त अन्य किसी कारण से राजाओं का मन विषण्ण नहीं होता। शत्रुकृत उद्वेग आपको हो नहीं सकता कारण आपके प्रताप से पृथ्वी आपके अधीन है। यदि कोई मानसिक विक्षोभ हुआ है और उसे बताने में कोई बाधा नहीं हो तो मुझे बताएँ ।' (श्लोक २६-३४)
राजा ने प्रत्युत्तर दिया-'छलना का आश्रय नहीं लेने पर भी तुम्हारे प्रताप से शत्र मेरे अधीन है। मेरे मानसिक विक्षोभ का भी तुम्हारे पास अवश्य ही निदान है-ऐसा मैं सोचता हूं । अतः तुम्हें न बतलाने का तो कोई कारण ही नहीं है। मैं जब यहाँ आ रहा था तब राह में एक ऐसी रमणी को देखा जिसने समस्त रमणियों का सौन्दर्य चुरा लिया है। काम द्वारा आहत मेरा मन उसी के द्वारा आच्छन्न है। अतः मेरे मन में कोई खुशी नहीं है। अब इस प्रसंग में तुम कोई ऐसा उपाय करो जिससे मैं उसे प्राप्त कर सकें।
(श्लोक ३५-३८) मंत्री ने कहा, राजन्, मैं उसे जानता हूं। वह जुलाहा वीर की पत्नी है । उसका नाम वनमाला है । मैं शीघ्र ही उसे आपकी सेवा में उपस्थित करूंगा। अभी आप अनुचरों सहित प्रासाद को लौट जाएँ।
(श्लोक ३६-४०) यह सुनकर राजा अस्वस्थ व्यक्ति की तरह पालकी पर चढ़े और वनमाला के विषय में सोचते हुए प्रासाद को लौट गए।
(श्लोक ४१) मन्त्री सूमति ने तब असम्भव को भी सम्भव करने वाली चतुर परिव्राजिका आत्रेयी को वनमाला के पास भेजा । आत्रेयी तत्क्षण वनमाला के घर गयी और वनमाला द्वारा सम्मानित होकर आशीर्वाद देते हुए बोली, वत्से, शीत के आगमन से जैसे कमल म्रियमाण हो जाता है उसी प्रकार तुम्हें भी म्रियमाण देख रही हैं। दिवस की चन्द्रकला की भाँति तुम्हारे कपोल पीले पड़ गए हैं। तुम्हारी दृष्टि में सूनापन है । तुम किस चिन्ता में निमग्न हो? पहले तो तुम मुझे अपनी सारी बातें बताती थी । तुम्हें क्या दुःख है वह