Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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देव आकर उपस्थित हुए और उनका निर्वाण महोत्सव उद्यापित किया । ( श्लोक २६२-२६६ )
षष्ठ सर्ग समाप्त
सप्तम सर्ग
जिनके ज्ञान रूपी क्षीर समुद्र के प्रवाह द्वारा यह पृथ्वी पवित्र बनी है और जो दन्तपंक्ति की भांति शुभ्रवर्ण के थे ऐसे सुव्रत स्वामी जयवन्त हों । ज्ञानियों के ज्ञानवर्द्धन के लिए निर्मल, मानो भगवती सरस्वती से ही प्राप्त हुआ हो, ऐसे उनके का वर्णन करूँगा ।
जीवन चरित्र ( श्लोक १-२ )
इस जम्बू द्वीप के पूर्व विदेह में भरत नामक विजय में चम्पा दीर्घबाहु और अमित बलशाली
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नामक एक वृहद् नगरी थी वहां इन्द्र-से सुरश्रेष्ठ राजत्व करते थे चारों प्रकार से वीर थे अर्थात् दानवीर, रणवीर, आचारवीर और धर्मवीर । वे अपना रण कौशल युद्ध में नहीं युद्धाभ्यास के समय ही दिखा पाते थे । कारण, उनका आदेश ही राजाओं को वशीभूत कर देता था। यहां तक कि मौन व्रती मुनि भी उनके गुणगान में अपना मौन व्रत भंग कर देते थे ।
( श्लोक ३-७ )
वे
एक बार मुनिनन्दन के चम्पा नगरी के उद्यान में पधारने पर वे उन्हें वन्दन करने गए । मिथ्यात्व रूप जंजाल को दूर करने में समर्थ उनकी देशना सुनकर वे संसार से विरक्त हो गए । अतः वे सुरश्रेष्ठ उनसे दीक्षित होकर सम्यक् चारित्र का पालन करने लगे । उन्होंने अर्हत् भक्ति और बीस स्थानक की उपासना कर तीर्थङ्कर गोत्र कर्म उपार्जन किया और मृत्यु के पश्चात् प्राणत नामक देवलोक में उत्पन्न हुए। वहाँ से च्युत होकर उन्होंने हरिवंश में जन्म ग्रहण किया । एतदर्थ प्रसंगवश हरिवंश का विवरण यहां दिया जाता है । वह इस प्रकार है( श्लोक ८-१२) अलङ्कार स्वरूप नामक एक राजा
जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश के कौशाम्बी नामक एक नगरी थी। वहां सुमुख राज्य करते थे । जिनके यश रूपी चन्दन से स्वर्ग का मुख भी चर्चित हुआ था । जंगल के अधिकार को जिस प्रकार सर्प लंघन नहीं