Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[२०७ वहां नमूची ने उद्धतभाव से पूछा-'धर्म क्या है ?' किन्तु मुनिगण वाद-विवाद न कर चुप रह एए। इससे नमूची और भी कुपित होकर अर्हत् वाणी की निन्दा करते हुए बोला-'तुम लोग क्या जानते हो? कुछ भी नहीं जानते ?' तब आचार्य सुव्रत क्रुद्ध मन्त्री से बोले-'यदि आप वाद करना चाहते हैं तो आइए हम वाद करें।' तब आचार्य सुव्रत के एक शिष्य बोले-'इसके साथ वाद में प्रवृत्त होना आपको शोभा नहीं देता। यह अपने को महापण्डित समझ रहा है। मैं ही इसे वाद में परास्त कर दूंगा। आप केवल दर्शक बनकर देखें। इस ब्राह्मण को बोलने दीजिए। मैं इसको वाद में निरुत्तर कर दूंगा।'
(श्लोक २२-२७) इससे ऋद्ध होकर नमूची कर्कश स्वर में बोला-'तुम लोग अपवित्र हो, विधर्मी हो एवं वेद मर्यादा के बाहर हो। तुम लोगों को इस राज्य में रहने का अधिकार नहीं है। यही हमारा पक्ष है। इसके प्रतिपक्ष में तुम क्या कहना चाहते हो ? (श्लोक २८-२६)
शिष्य बोले- 'सभी जानते हैं कि जो सम्भोगी होते हैं वे ही अपवित्र होते हैं। जो सम्भोग में निरत हैं वे ही विधर्मी हैं एवं वेद मर्यादा के बाहर हैं । वैदिक सिद्धान्त यह है कि जल के स्थान, हमाम दस्ता, चक्की, चूल्हा और झाडू ये पाँच गृहस्थों के पापस्थानक हैं, जो इन पाँचों स्थानो की नित्य सेवा करते हैं, वे अपवित्र और वेद बाह्य हैं । हम लोग जो कि इन पांचों स्थानों से रहित हैं वे वेद मर्यादा के बाहर कैसे हैं ? हम जैसे निर्दोष महात्माओं का आप जैसे म्लेच्छों के मध्य रहना उचित नहीं है।' (श्लोक ३०-३३)
शिष्य के द्वारा इस प्रकार युक्तिपूर्ण प्रत्युत्तर से पराजित होकर नमूची स्वस्थान को लौट गए। राजा और उनके अनुचर भी लौट गए। आधी रात को नमूची शय्या त्याग कर अत्यधिक क्रोध से प्रज्वलित बना राक्षस की तरह मुनि शिष्य को मारने के लिए उद्यान की ओर गया। सपेरा जिस प्रकार सर्प को स्तम्भित कर देता है उसी प्रकार शासन देवी ने उसे उसी प्रकार देखा-राजा और प्रजा ने भी जब इस अलौकिक घटना को देखा और धर्म श्रवण किया तब वह मद रहित हस्ती की भांति शान्त हो गया।
(श्लोक ३४-३७) इस प्रकार अपमानित होकर नमूची हस्तिनापुर चला गया।