Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१९३ अब मुझे क्यों नहीं बताती ?
(श्लोक ४२-४५) तब वनमाला दीर्घ निःश्वास छोड़ती हुयी बोली, जो वस्तु मिल नहीं सकती उसके लिए आप से क्या कहूं ? एक ओर सामान्य गर्दभी और अन्य ओर अश्वरत्न उच्चैःश्रवा है, एक ओर सामान्य शृगाली, दूसरी ओर वनराज सिंह है, एक ओर सामान्य मादा गौरैया अन्य ओर पक्षीराज मयूर है। मैं एक सामान्य जुलाहा की पत्नी हं और जो मुझे प्रिय है, वह मुझे अलभ्य है। भगवद् इच्छा से ऐसा मिलन कदाचित् सम्भव भी हो जाता है; किन्तु नीच कुल में उत्पन्न मेरा मिलन उनसे होना स्वप्न में भी सम्भव नहीं है।
(श्लोक ४६-४९) आत्रेयी बोली, वत्से, मैं तेरी इच्छा पूर्ण करूंगी। मन्त्र और वशीकरण से क्या सम्भव नहीं होता ? तब वनमाला बोली, आज मैंने राजा को हाथी पर चढ़कर पथ पर जाते देखा । ऐसा लगा मानो स्वयं मदन ही वहाँ बैठा हो चन्दन प्रलेप-से सुखद उन्हें देखने के पश्चात् से प्रबल काम ज्वर मेरे समस्त शरीर में व्याप्त हो गया है। इस काम ज्वर के उपचार स्वरूप उनका मिलन तो तक्षक दंश की भाँति दुर्लभ है । अब मैं क्या करूँ ? आप ही बताइए ।
__ (श्लोक ५०-५३) यह सुनकर आत्रेयी बोली, मैं मन्त्रबल से देव, राक्षस, सूर्य, चन्द्र और विद्याधरों को भी पृथ्वी पर उतार सकती हूं, यह तो सामान्य मनुष्य की कथा है । मुग्धे, कल सुबह ही मैं राजा के साथ तुम्हारा मिलन कराऊँगी, नहीं तो जीवित ही अग्नि में जल मरूंगी। मुझ पर विश्वास रख ।
(श्लोक ५४-५५) इस प्रकार वनमाला को आश्वस्त कर परिव्राजिका मन्त्री सुमति के पास गयी और बोली, बस समझ लो राजा का मनोरथ पूर्ण हो गया है । मन्त्री ने भी राजा के पास जाकर उन्हें सान्त्वना दी । प्रिया को पाने की आशा भी आनन्ददायक होती है।
(श्लोक ५६-५७) सुबह आत्रेयी वनमाला के घर गयी और बोली, राजा सुमुख मेरे प्रभाव से तेरे प्रति सदय हो गए हैं । अब चल मेरे साथ तुझे राजमहल पहुंचा दूं। वहाँ रानी की तरह राजा के साथ, इच्छा अनुसार रहना । तब वनमाला तैयार होकर आत्रेयी के साथ चली