Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१०९ वे स्वयं भी सब कुछ जानते हैं फिर भी हम जाकर उन्हें यह बतलाएँ कि उनके व्रत ग्रहण का समय हो गया है । यह परम्परागत है।'
(श्लोक २६७-२७१) परस्पर इस प्रकार वार्तालाप कर सारस्वत आदि देब विमान में बैठकर शान्तिनाथ के निकट आए। उन्हें तीन बार प्रदक्षिणा देकर प्रणाम किया और करबद्ध होकर बोले-'प्रभ, तीर्थ स्थापना का समय हो गया है ।' ऐसा कहकर उन्हें पुनः प्रणाम कर लोकान्तिक देव स्वर्ग को लौट गए। (श्लोक २७२-२७४)
___ एक वर्ष पूर्व तक उन्होंने ज़म्भक देवों द्वारा लाए धन का दान किया। तदुपरान्त संयम रूप साम्राज्य के चक्रवर्तीत्व को प्राप्त करने के लिए अपने पुत्र जो कि उन्हीं का प्रतिबिम्ब-सा था ऐसे चक्रायुध को राज्यभार सौंप दिया। उनका दीक्षा महोत्सव भी उनके चक्रवर्ती पद के अभिषेक-उत्सव की तरह देवों, मनुष्यों और चक्रायुध द्वारा अनुष्ठित हुआ । चक्रवर्ती तब सर्वार्था नामक शिविका पर चढ़कर उसमें रखे सिंहासन पर बैठ गए। प्रथम मनुष्यों ने उस शिविका को उठाया। फिर देव पूर्व दिशा में, असुर दक्षिण दिशा में, सुपर्णकुमार पश्चिम दिशा में और नागकुमार उत्तर दिशा की ओर ले गए।
(श्लोक २७४-२७८) तदुपरान्त प्रभु सहस्राम्रवन नामक उद्यान में पधारे। वहां पाटल पुष्पों ने आकाश को सन्ध्या राग से रंजित कर रखा था। ग्रीष्मकालीन श्री के मिलन से शिरीष पुष्पों से वह वन मानो हर्षित हो रहा था। स्वेद जल झरने की भांति ज ही के फूल झर रहे थे। देवधर वृक्ष की स्वर्णिम फलियां कामदेव के धनुष का भ्रम उत्पन्न कर रही थीं। धातकी के नवीन पुष्पोद्गम से आकृष्ट होकर भ्रमर पंक्तिबद्ध बने गुन-गुन गीत गा रहे थे मानो वे ग्रीष्म-लक्ष्मी को गीत सुना रहे हों। लटकती हुई खजूरों की पुष्पराजि धनलक्ष्मी के पयोधर-सी प्रतीत हो रही थी। फल-भक्षण के लिए उत्साही बने शुक पक्षियों की श्रेणीबद्ध पूछों से वह वन मानो द्विधा विभक्त हो गया है ऐसा लग रहा था। पत्र-पल्लवों के समारोह से वह वन चातक पक्षीमय है ऐसा भ्रम हो रहा था : नागरिकगण उस वन में क्रीड़ा कर रहे थे।
(श्लोक २७९-२८४) वहां पहुंचकर भगवान् शान्तिनाथ शिविका से उतरे और