Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 175
________________ १६६] लालन-पालन करने लगे। वह शान्त स्वभाव व सरल थी। उसके नेत्र हरिणी के नेत्रों की तरह भीरु थे। जब तक उसने मदन के सुन्दर निकुञ्ज-सा यौवन प्राप्त नहीं किया तब तक जमदग्नि अंगुली के पोरों पर दिन, महीने, वर्ष गिनते रहे। जब रेणुका यौवन को प्राप्त हुई तब अग्नि को साक्षी बनाकर भूतेश (शिव) ने जिस प्रकार पार्वती से विवाह किया था उसी प्रकार विधिवत् रेणुका से विवाह कर लिया। (श्लोक ४३-५०) __ ऋतुकाल में जमदग्नि रेणुका से बोले,–'मैं तुम्हारे लिए ऐसा चरु प्रस्तुत करूंगा जिससे तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण श्रेष्ठ होगा।' यह सुनकर रेणुका बोली,-मेरी बहिन हस्तिनापुर के राजा अनन्तवीर्य की रानी है उसके लिए भी ऐसा ही चरु प्रस्तुत करें ताकि उसका पुत्र क्षत्रियश्रेष्ठ हो।' पुत्र की कामना में जमदग्नि ने तब दोनों चरु प्रस्तुत किए और रेणुका को वे चरु दिए । रेणुका तब सोचने लगी मैं तो वन की हिरणी बनी हूं; किन्तु मेरा पुत्र ऐसा नहीं बने ऐसा सोचकर उसने क्षत्रिय चरु स्वयं रख लिया और ब्राह्मण चरु अपनी बहिन को भेज दिया। दोनों गर्भ से पुत्रों ने जन्म ग्रहण किया। रेणुका के राम ओर उसकी बहिन के कृतवीर्य जन्मा । (श्लोक ५१-५५) एक दिन आकाश से एक विद्याधर जा रहा था । वह सहसा अतिसार रोग से आक्रान्त होने के कारण विद्या भूल गया अतः वहाँ उतरा। राम ने भाई की तरह औषधि आदि देकर उसकी सेवा की, उसे स्वस्थ किया। विद्याधर इससे प्रसन्न होकर राम को एक परशु विद्या दी। इक्षु क्षेत्र में जाकर राम ने उस परशु विद्या को अधिगत किया और तभी से वह परशुराम रूप से परिचित होने लगा। (श्लोक ५६-५८), एक दिन रेणुका स्वामी से विदा लेकर अपनी बहिन को देखने हस्तिनापुर गयी। जहां प्रेम होता है वहां दूरी नहीं होती। हरिण-नयनी रेणुका को देखकर अनन्तवीर्य कामान्ध हो उठा और उससे कामक्रीड़ा की, यह भी नहीं सोचा यह मेरी पत्नी की बहिन है। सचमुच कामान्ध क्या नहीं कर बैठता। पुरन्दर ने अहिल्या के सहवास से जिस प्रकार आनन्द प्राप्त किया था, अनन्तवीर्य ने भी ऋषिपत्नी के सहवास से उसी प्रकार आनन्द

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