Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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मैं आपको प्रणाम करता हूँ । हे भगवन्, बहुत दिनों के पश्चात् आपके दर्शन का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है । साधारण मनुष्य जिन देवों को देख नहीं पाते उन्हीं देवों का देवत्व, हे देवाधिदेव, आपके जन्माभिषेक के समय आपका दर्शन कर सार्थक हुआ है । एक समय आप अच्युतेन्द्र थे, एक समय मानव । अतः संसार चक्र से हमारी रक्षा करिए । पृथ्वी के स्वर्ण किरीट तुल्य इस मेरुपर्वत पर नीलकान्त मणि की तरह आप शोभित हो रहे हैं । भव्य जीव आपके स्मरण करने मात्र से ही मुक्ति को प्राप्त करेंगे मानो इसी लिए आपने जन्म ग्रहण किया है । फिर जिन्होंने आपको देखा है, आपकी स्तुति की है उनका तो कहना ही क्या ? उनका फल तो महत्तम होगा ही । एक ओर समस्त सुकर्म हैं, अन्य ओर आपका दर्शन, वह दोनों तुल्य मूल्य है, दूसरी बार दर्शन की भी आवश्यकता नहीं है । आपके चरणों में पतित होकर मनुष्य जिस आनन्द को प्राप्त करता है वह आनन्द तो इन्द्र क्या अहमिन्द्र बनकर भी नहीं पाया जा सकता, यहां तक कि मोक्ष में भी नहीं ।' ( श्लोक ४३ - ५० ) उन्नीसवें तीर्थङ्कर की इस प्रकार स्तुति कर शक उन्हें मिथिला ले गए और माँ के पास सुला दिया । वे जब गर्भ में थे तब उनकी माँ को पुष्प पर सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था इसीलिए राजा ने पुत्री का नाम रखा मल्ली । इन्द्र द्वारा नियुक्त पांच धात्रियों द्वारा पालित होकर मल्ली ने फूल की तरह विकसित होकर यौवन प्राप्त किया । ( श्लोक ५१-५३)
अचल के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर भरत क्षेत्र साकेत नगर प्रतिबुद्धि नामक राजा के रूप में जन्म ग्रहण किया । उनकी पत्नी पद्मावती सौन्दर्य में पद्म के अनुरूप थी, वह अन्तःपुर के चूड़ामणि रूप थी । उस नगर के ईशान कोण के नाग मन्दिर में एक नागमूर्ति स्थापित थी जो कि भक्तों की कामना पूर्ण करती थी । एक दिन पद्मावती ने अनुचरों सहित उस मन्दिर में जाने की राजा से आज्ञा मांगी। राजा ने केवल अनुमति ही कहीं दी पुष्पादि मँगवाकर स्वयं भी उस नाग मन्दिर में गए। वहां पुष्प - संभार से सज्जित सभामण्डप और स्वपत्नी को दिखाकर प्रतिबुद्धि ने अपने प्रधानमन्त्री से पूछा - 'आप तो राज्यकार्य से अनेक राज्यों मैं, अनेक राजधानियों में जाते हैं, क्या कहीं भी ऐसा सुसज्जित मण्डप और