Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उनके कक्ष में प्रविष्ट हुई। प्राणघातक उस गन्ध से जिस प्रकार शत्रु से भयभीत लोग दूर भागते हैं, उसी प्रकार नाक को वस्त्र से आवृत कर वे भी वहाँ से दूर भाग गये। (श्लोक १८३-१८७)
_ 'आप सब लौट क्यों रहे हैं ?' मल्ली ने पूछा । उन्होंने उत्तर दिया 'इस भीषण दुर्गन्ध को हम सहन नहीं कर पा रहे हैं।' तब मल्ली बोली, 'वह स्वर्णमूर्ति है। उसमें प्रतिदिन डाला गया अन्न सड़कर दुर्गन्ध फैला रहा है। तब जो पिता के वीर्य और माता के रजः से उत्पन्न होता है उसके विषय में तो क्या कहूं ? भ्रूण से वह क्रमशः पूर्णांग होता है । मां के देह से उत्पन्न आहार और दूध पान कर वह पोषित होता है। जरायु के नरक में रहकर उसका शरीर मल-मूत्र के मध्य निवास करता है। इस प्रकार जो देह निर्मित होती है उसका मूल्य ही क्या है ? वही शरीर तो अम्ल रक्त, मांस, चर्बी, हड्डी, मज्जा और मूत्र नाली से निर्गत शुक्र की तरह दूषित वस्तुओं का भंडार है। नगर नालियों की तरह वह दुर्गन्ध युक्त और कफादि वस्तु के लिए चमडे की थैली विशेष है। अमृत वर्षा लवणाक्त मिट्टी पर पड़कर जैसे लवणाक्त हो जाती है उसी प्रकार कर्पूरादि सुगन्ध द्रव्य द्वारा सूवासित देह चिता के सम्पर्क में आकर विशेष दुर्गन्धमय हो जाती है। इसलिए विवेकशील व्यक्ति की इस शरीर पर जो कि भीतर और बाहर से एक सा अशुद्ध है आसक्ति कैसे रह सकती है? हे अज्ञानी, क्या तुम लोगों को याद नहीं पूर्व के तीसरे भव में तुम लोग अपर महाविदेह में सलीलवती विजय में मेरे साथ तपस्या कर रहे थे।
(श्लोक १८८-१९६) मल्ली की बात सुनकर राजाओं को पूर्वजन्म का ज्ञान हुआ। अर्हतों की कृपा से क्या नहीं होता ? मल्ली ने जाली के दरवाजे खोल दिए तब वे छहों सम्बुद्ध राजा मल्ली के पास आए।
(श्लोक १९७-१९८) 'हमें स्मरण हो आया है कि पूर्व जन्म में हम सातों मित्र थे। और एक साथ प्रतिज्ञाबद्ध होकर एक-सी तपस्या करते थे । तुमने हमें यह स्मरण करवाकर बहुत अच्छा किया है । हम नरक जाने से बच गए हैं । अब हमारा क्या कर्तव्य है ? तुम्ही बताओ। कारण, तुम्ही हमारे गुरु हो।'
(श्लोक १९९-२००) 'ठीक समय पर मेरे निर्देशानुसार आप सब दीक्षा ग्रहण