Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ऐसी सुसज्जित नारी देखी है ?'
(श्लोक ५४-६०) सुबुद्धि बोले 'महाराज, आपके आदेश से जब मैं मिथिला गया था वहाँ महाराज कुम्भ की कन्या मल्ली को देखा । रमणी रत्नों में प्रथमा मल्ली के जन्म दिवस पर वहाँ नाना वर्णीय पूष्पों से जिस सभामण्डप की रचना की गई थी । वैसी तो स्वर्ग में भी नहीं होती। मल्ली के रूप के सम्मुख चक्रवर्ती का रमणीरत्न, मदन की रति, इन्द्र की शची भी तणवत् है । कुम्भ की कन्या मल्ली को जिसने भी एकबार देखा है वह अमृत के स्वाद की तरह उस अपरूप सौन्दर्य को कभी भूल नहीं सकता। क्या मानवी, क्या देवी उसके अनुरूप कोई नहीं है । सच कहें तो उस रूप को भाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
(श्लोक ६१-६५) पूर्व जन्म की प्रीति के कारण प्रतिबुद्धि ने तत्क्षण मल्ली से पाणिग्रहण का प्रस्ताव लेकर राजा कुम्भ के पास दूत भेजा । (६६)
धरण के जीव ने वैजयन्त विमान से च्युत होकर चम्पा नगरी में चन्द्रच्छाया नामक राजा रूप से जन्मग्रहण किया। उसी नगर में अरहन्नक नामक एक जैन श्रेष्ठी रहते थे। वे वाणिज्य के लिए समुद्री यात्रा किया करते थे। एक बार जबकि वे समुद्री यात्रा पर थे शक्र ने एक दिन देव सभा में यह कहकर उनकी प्रशंसा की कि अरहन्नक जैसा श्रावक नहीं है । एक देव को इस पर विश्वास नहीं हुआ । अत: उनकी परीक्षा लेने के लिए मत्युलोक में उतरा और मेघ एवं चक्रवात वायु की सृष्टि की। नाविक भयभीत होकर सम्यक्त्वहीन देव-देवियों की शरण लेने लगे; किन्तु अरहन्नक ने सोचा इस संकट काल में यदि मृत्यु होती है तो मेरे लिए अनशन लेना उचित है।
(श्लोक ६७-७९) एतदर्थ वे संसार के समस्त बन्धनों को छिन्न कर ध्यान में निमग्न हो गये । तब वे देव राक्षस का रूप धारण कर आकाश में स्थित रहकर उनसे बोले, 'अर्हत धर्म परित्याग कर मेरी आज्ञा मानो। नहीं तो तेरे इस जहाज को खिलौने की तरह तोड़कर टुकड़ाटुकड़ा कर दूंगा और तुझे और तेरे साथियों को जल-जन्तुओं का शिकार बना दूंगा।
(श्लोक ७२-७४) इस भय प्रदर्शन पर भी जब अरहन्नक अविचल रहा तो वे देव विस्मित हुए और शक की प्रशंसा वाली बात सुनाकर उनसे