Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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१६८] कर अन्य अरण्य में चली जाती है उसी प्रकार परशुराम द्वारा विजित उस नगरी का परित्याग कर तापसों के एक आश्रम में चली गई। दयालु कुलपति ने धरोहर की भांति उसे भूमिगृह में रखा
और निष्ठुर परशुराम के हाथों से उसकी रक्षा की । उसी भूमिगृह में चौदह महास्वप्नों द्वारा जो कुछ सूचित हुआ उसी के अनुरूप एक पुत्र का जन्म हुआ। भूमिगृह में जन्म लेने के कारण उसका नाम रखा गया सुभूम।
(श्लोक ७२-७८) परशुराम की कुठार क्षत्रिय देखते ही मानो मूर्तिमान क्रोधाग्नि हो इस प्रकार जल उठती। क्षत्रियों को निःशेष करतेकरते एक बार वे उसी आश्रम में गए । धुआं जैसे अग्नि की सूचना देता है उसी प्रकार उनका कुठार जल उठने से यह सूचित हुआ कि यहां क्षत्रिय अवस्थित है। तापसों से तब उन्होंने पूछा-'यहां कौन क्षत्रिय उपस्थित है, बताओ?' उन्होंने प्रत्युत्तर दिया-'हम ही क्षत्रिय हैं, जो अब तापस हो गए हैं।' यह सुनकर परशुराम लौट गए। दावाग्नि जैसे पहाड़ पर उगे लता-पत्रों को जलाकर राख कर देती है उसी प्रकार परशुराम ने सात-सात बार पृथ्वी को निःक्षत्रिय कर दिया और उनके दांत जिन्हें खाकर यम परितृप्त हुआ है ऐसे यम के खाद्य रूप एक वृहद् थाल में सजाकर रखा।
श्लोक ७९-८३) एक दिन परशुराम ने एक नैमित्तिक से पूछा- 'मेरी मृत्यू किसके हाथ से होगी?' कारण, जो युद्ध-विग्रह में लिप्त रहते हैं वे शत्रु के हाथ से मृत्यु भय से भयभीत रहते हैं । प्रत्युत्तर में नैमित्तिक ने कहा-'जिसके प्रताप से यह दांत क्षीर में परिणत हो जाएगा और जो इस सिंहासन पर बैठकर उस क्षीर का पान करेगा उसी के हाथों आपकी मृत्यु होगी।' तब परशुराम ने एक दानशाला निर्मित कर उसमें उस सिंहासन को रख दिया और उसके सामने एक उच्चासन पर वह थाल सजाकर रखा। (श्लोक ८४-८६)
प्राङ्गण में जैसे वृक्ष वद्धित होता है उसी प्रकार छब्बीस धनुष दीर्घ स्वर्णवर्ण सुभूम क्रमशः यौवन को प्राप्त हुआ।
(श्लोक ८७) वैताढय पर्वत निवासी विद्याधर मेघनाद ने एक दिन नैमित्तिकों से पूछा- 'मेरी कन्या पद्मश्री का पति कौन होगा ?'