Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[१२९ चन्द्र जब कृत्तिका नक्षत्र में अवस्थित था श्रीदेवी की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ। चार दन्त विशिष्ट श्वेत हस्ती, रात्रि में विकसित श्वेत कमल-सा श्वेत वर्ण वृषभ, केशर युक्त सिंह, स्नानाभिषेक से सुन्दर लक्ष्मी, पंचवर्णीय पूष्पमाला, पूर्ण चन्द्र, सहस्रमाली सूर्य, पताका युक्त ध्वजदण्ड, जलपूर्ण स्वर्णकलश, कमल भरा सरोवर, तरंगायित समुद्र, रत्नमय प्रासाद, रत्नराशि और निर्ध म अग्नि इन चौदह महास्वप्नों को गर्भ के प्रभाव से महारानी श्री ने देखा। सुबह महारानी से स्वप्नों की बात सुनकर राजा बोले-'स्वप्नानुसार तुम्हारा पुत्र चक्रवर्ती या तीर्थङ्कर होगा।' (श्लोक २७-३३
नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर वैशाख चतुदर्शी के दिन चन्द्र जब कृत्तिका नक्षत्र में अवस्थान कर रहा था और सकल ग्रह उच्च स्थान में थे तब श्री देवी ने अज लांछनयुक्त स्वर्णवर्णीय और शुभ लक्षणों से भरे एक पुत्र को जन्म दिया। मुहूर्त भर के लिए त्रिलोक में एक आलोक व्याप्त हो गया और नारकी जीवों को भी क्षण भर के लिए आनन्द का अनुभव हुआ। शक एवं अन्य इन्द्रों का आसन कम्पित हुआ। सिंहासन कम्पित होने से छप्पन दिक् कुमारियां भृत्य की तरह वहां आकर उपस्थित हुईं। उन्होंने उनका जन्म कृत्य सम्पन्न किया। शक पांच रूप धारणकर प्रभु को मेरु पर्वत पर ले गए। वेसठ इन्द्रों ने तीर्थों से लाए जल से उन्हें स्नान करवाया। शक ने तब प्रभु को ईशानेन्द्र की गोद में बैठाकर उन्हें स्नान करवाकर पूजादि कर इस प्रकार स्तुति की
_ 'हे जगन्नाथ, आज क्षीरोदादि समुद्र का जल, पद्मादि सरोवर का कमल और जल, क्षुद्र हिमवतादि पर्वतों की औषधि, भद्रशाल वनादि के पुष्प, मलयादि अधित्यकाओं का चन्दन आपको स्नान करवाकर जीवन की सार्थकता प्राप्त की है। आपका जन्म कल्याणक मनाकर देवों की क्षमता ने आज सार्थकता प्राप्त की है । प्रासाद जैसे मूर्ति से शोभित होते हैं मेरु पर्वत भी उसी प्रकार आप से शोभित होकर आज श्रेष्ठता और तीर्थस्थल में परिणत हो गया है। आपको देखकर नेत्र, आपको स्पर्श कर हाथ आज वास्तविक नेत्र और हाथ हुए हैं। अवधिज्ञान से यह जानकर कि आपका जन्म हुआ है अवधि ज्ञान भी आज, हे जिन, सार्थक हुआ है । हे भगवन्, स्नान कराते समय आज आप जिस प्रकार मेरे गोद में विराजमान