Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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पालकी में बैठकर सहस्राम्रवन उद्यान में गए । नन्दयावर्त लांछनयुक्त प्रभु ने उस उद्यान में प्रवेश किया जहां कोकिलाएँ मौन व्रतधारी साधुओं की तरह वृक्षशाखाओं पर बैठी थीं । पथिक वहां गोप बन्धुओं के सङ्गीत से आकृष्ट होकर आए थे । नगर विलासिनियों के दीर्घ केश-भार से मानो लज्जित होकर, मयूर अपने पंखों को फेंक कर इक्षु क्षेत्र में आश्रय लिए हुए थे । पुन्नाग पुष्पों की गन्ध से भ्रमर उन्मत्त हो उठे थे और फूल एवं कमलानींबू के सम्भार से समस्त वन ने हरिद्रावर्ण धारण कर रखा था । लावली, फलिनी, यूथी, मुचकुन्द फूलों ने शीत ऋतु के हास्य की भांति विकसित होकर समस्त उद्यान को आलोकित कर रखा था । लोध्र फूलों के पराग ने आकाश को अन्धकारमय कर रखा था । वैजयन्ती शिविका से उतर कर दो दिनों के उपवासी प्रभु ने एक हजार राजाओं के साथ अग्रहायण शुक्ला एकादशी के दिन चन्द्र जब रेवती नक्षत्र में अवस्थित था स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली । दीक्षा ग्रहण के साथसाथ उन्हें मनःपर्याय ज्ञान उत्पन्न हुआ । द्वितीय दिन प्रभु ने राजपुर नगर के राजा अपराजित के घर पर क्षीरान्न ग्रहण कर पारणा किया । देवों ने पांच दिव्य प्रकट किए । राजा अपराजित ने प्रभु जिस स्थान पर खड़े हुए थे वहीं एक रत्नवेदी का निर्माण करवाया । (श्लोक ४८-५८)
प्रभु बिना कहीं सोए, बिना कहीं बैठे व्रत यापन करते हुए तीन वर्ष तक छद्मस्थ अवस्था में पृथ्वी पर विचरण करते रहे । तदुपरान्त वे उसी सहस्राम्रवन उद्यान में पुन: लौट आए और प्रतिमा धारण कर आम्रवृक्ष के नीचे अवस्थित हो गए । कार्तिक शुक्ला द्वादशी के दिन चन्द्र जब रेवती नक्षत्र में था तब घाती कर्मों के क्षय हो जाने से प्रभु को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । देवों ने तत्क्षण समवसरण की रचना की । प्रभु पूर्व द्वार से उसमें प्रविष्ट हुए और तीन सौ साठ धनुष दीर्घ चैत्यवृक्ष की प्रदक्षिणा देकर 'नमो तित्थाय ' कहकर पूर्व दिशा में रखे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए । व्यन्तर देवों ने अन्य तीन ओर उनकी प्रतिमूर्तियां रखीं । चतुर्विध संघ भी यथास्थान बैठ गया । प्रभु समवसरण में अवस्थित हुए हैं, जानकर कुरुपति अरविन्द वहां आए और प्रभु को प्रणाम कर शक्र के पीछे बैठ गए । तदुपरान्त शक्र और अरविन्द ने प्रभु की इस