Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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प्राप्त की जा सकती है ताकि आत्मा स्व-स्वरूप में निष्कलंक भाव से अवस्थित रहें ।' ( श्लोक १०७ - ११२) उनकी यह देशना सुनकर बहुत से प्रव्रजित हो गए और स्वयम्भू आदि ३५ गणधर हुए । प्रथम याम बीत जाने पर प्रभु देशना से निवृत्त हुए । तब उनके पादपीठ पर बैठकर स्वयंभू गणधर ने देशना दी । द्वितीय याम बीत जाने पर वे भी देशना से निवृत्त हो गए । देव और अन्य जन भगवान कुन्थुनाथ को प्रणाम कर स्वस्व लोक चले गए । ( श्लोक ११३-११५) भगवान कुन्थुनाथ के तीर्थ में कृष्णवर्णीय हंसवाहन गन्धर्व नामक यक्ष उत्पन्न हुए। जिनके दाहिने हाथों में से एक में पाश था, दूसरा वरद मुद्रा में था और बायें हाथों में से एक में विजोरा और दूसरे में अंकुश था । वे भगवान के शासनदेव बने । उनके तीर्थ में शुक्लवर्णा मयूरवाहिनी वला नामक यक्षिणी उत्पन्न हुई। उनके दाहिनी ओर के हाथों में से एक में बिजोरा और दूसरे में अंकुश था एवं बाएँ हाथों में से एक में भुषण्डी और दूसरे में कमल था । सर्वदा निकट रहती हुई वे उनकी शासन देवी बनी ।
( श्लोक ११६-११७)
अन्य जीवों की मुक्ति के लिए जगद्गुरु उनके साथ पृथ्वी पर सर्वत्र विचरने लगे । भगवान कुन्थुनाथ के संघ में ६०००० साधु एवं ६०६०० साध्वियां, ६७० पूर्वधारी, २५०० अवधि ज्ञानी, ३३४० मनःपर्याय ज्ञानी, ३२०० केवलज्ञानी, ५१०० वैक्रिय लब्धिधारी, १२००० वादी, १७९००० श्रावक तथा ३९१००० श्राविकाएँ थीं । ( श्लोक ११८-१२५) केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् २३७३४ वर्ष बीत जाने पर निर्वाण समय निकट जानकर प्रभु १००० मुनियों सहित सम्मेत शिखर पधारे और अनशन ग्रहण कर लिया । एक मास पश्चात् वैशाख कृष्णा प्रतिपदा के दिन चन्द्र जब कृत्तिका नक्षत्र में था तब उन्होंने १००० मुनियों सहित मोक्ष प्राप्त किया । भगवान कुन्थुनाथ की पूर्ण आयु ९५००० वर्ष की थी, जो कि युवराज, राजा, चक्रवर्ती और व्रती रूप में समान भाग में विभक्त थी । भगवान शान्तिनाथ के निर्वाण के अर्द्ध पल्योपम पश्चात् भगवान कुन्थुनाथ निर्वाण को प्राप्त हुए । इन्द्र और देवों ने उनका निर्वाण