Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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सत्कार सहित उसे विदा किया।
(श्लोक ४२९) ___ 'इस प्रकार परस्पर वार्ता विनिमय में कुछ काल व्यतीत हुआ । एक दिन वसन्तदेव जब निज घर में विश्राम कर रहे थे तभी पंचनन्दी के घर से मङ्गलवाद्य की आवाज सुनाई दी। भत्य को पूछने पर उसने कहा-'पंचनन्दी ने कान्यकुब्ज निवासी श्रेष्ठी सुदत्त के पुत्र वरदत्त के साथ केशरा का सम्बन्ध किया है यह उसी का मङ्गलवाद्य है।
(श्लोक ४३०-४३४) _ 'यह सुनकर मानो किसी ने उसके सिर पर हथौड़ा मार दिया हो इस प्रकार मूच्छित होकर वह गिर पड़ा। ठीक उसी समय प्रियंकरा वहां आई और उसे स्वस्थ कर बोली-'आप चिन्ता न करें। मेरी प्रिय सखी ने कहला भेजा है-गुरुजनों के मनोभाव को जानकर मैं आपके साथ ही विवाह करूंगी। उन्होंने मेरी इच्छा जाने वगैर ही यह सम्बन्ध पक्का कर लिया है। वे चाहे जो स्थिर करें मैं ऐसा नहीं करूंगी। मैं या तो आपको होऊँगी या मृत्यु को वरण करूंगी। आप मेरी इस बात को सत्य समझिएगा। कारण, उच्च कुल जात कभी झूठ नहीं बोलते।' (श्लोक ४३५-४३८) ___'यह सुनकर वसन्तदेव आनन्दित हुए और बोले-'मेरा स्वप्न भी तो यही कहता है। उच्चकूलजात कभी मिथ्या नहीं बोलते यह मैं जानता हूं। मैं भी केशरा के लिए ही जीऊँगा। अगर वह नहीं मिली तो प्राण त्याग दूंगा।'
(श्लोक ४३९-४४०) प्रियंकरा ने यह बात जाकर केशरा से कही। यह सुनकर केशरा भी आनन्दित हुई। फिर वे लोग किस प्रकार मिलेंगे यह परिकल्पना करते हुए चक्रवाक की दुखद रात्रि-से कुछ दिन बीत गए। इसी मध्य उनका मनोरथ पूर्ण होने के पूर्व ही लग्न के पहले दिन बारात आ पहुंची।
(श्लोक ४४१-४४३) 'यह सुनकर वसन्तदेव नगर परित्याग कर एक उद्यान में गए। उन्होंने सोचा केशरा का यदि दूसरे के साथ विवाह हुआ तो वह वहीं कुम्हड़े की भांति सूखकर मर जाएगी। अथवा यथार्थ बात जाने बिना उसके गुरुजनों ने जो विवाह स्थिर किया है उसके भार से व मुझे नहीं पाने के दुःख से वह विवाह के पूर्व ही आत्महत्या कर सकती है। अतः क्यों नहीं मैं उसकी मृत्यु के पूर्व ही मृत्यु-वरण कर दुःख को हल्का करूं। घाव पर नमक की तरह