Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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करने की भांति विध्वंस कर दिया ।
( श्लोक १८० - १८४ ) अग्रगामी सेना को विध्वंस होते देखकर भयंकर क्रोध से तप्त वर्ण कृतान्त की तरह अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित होकर सेनापतिरत्न अपने हाथ में खड्गरत्न लेकर अश्वरत्न पर आरोहण कर किरातों की ओर दौड़े । तीन रत्न सेनापतिरत्न, खड्गरत्न, अश्वरत्न के एक साथ एकत्र होने से वे तीनों प्रज्वलित अग्नि-से लगने लगे । अश्वश्रेष्ठ गरुड़ की तरह द्रुतगति से अग्रसर होकर धरती को विदीर्ण करता हुआ सेनापति की मन की गति से भी तेजगति से दौड़ा । जलस्रोत के सम्मुख जैसे वृक्ष नहीं ठहरते हैं वैसे ही सेनापति रत्न के आक्रमण के सामने उनके अश्वारोही और पदातिक सेना खड़ी नहीं रह सकी । कोई गह्वर में कूद पड़ा, कोई झाड़ झंखाड़ में छिप गया, कोई पर्वत पर चढ़ गया, कोई जल में घुस गया । किसी ने अस्त्रों का परित्याग कर दिया, कोई निर्वस्त्र हो गया, कोई मृत की भांति स्थिर हो गया, कोई जमीन पर लोटने लगा । वृक्ष की शाखा के टूटकर गिरने की तरह किसी का हाथ कट कर गिर गया, फलों की तरह किसी का माथा जमीन पर गिर पड़ा, हथेलियां पंखुरियों की भांति झर कर गिर पड़ी। किसी का दांत टूट गया, किसी का पैर; किसी की खोपड़ी खाली बर्तन की तरह खन-खन करने लगी । अश्वरत्न सहित जब सेनापतिरत्न समर रूपी समुद्र ' में अवतरित होते हैं तो जल-जन्तुओं की तरह शत्रु सैन्य का विनष्ट होना स्वाभाविक है । ( श्लोक १८५-१९४ )
सेनापति द्वारा इस प्रकार अनुस्यूत होकर किरातगण उसी प्रकार चारों ओर बिखर गए जैसे धुनी हुई रूई हवा में बिखर जाती है । कई योजन दूर जाकर लज्जा और क्रोध से भरे वे विचारविमर्श के लिए एकत्र हुए । ( श्लोक १९५-१९६) हाय ! वैताढ्य पर्वत को लांघकर यहां आने की यह विपत्ति क्यों संघटित हुई ? उद्धत समुद्र तरंगों की तरह विशाल सैन्य - वाहिनी लिए आकर उन्होंने हमारी भूमि को आच्छादित कर दिया है। उनकी सेना के एक व्यक्ति ने हमारे प्रतापी योद्धाओं को हरा दिया । जिनकी भुजाएँ साहस से फूल उठती थीं ऐसे हम लज्जा के मारे स्वयं की ओर देख भी नहीं सकते। अब तो हम मुँह दिखाने योग्य भी नहीं हैं । तो क्या अब हम ज्वलन्त आग में प्रवेश