Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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धूमधाम से पुत्र-जन्म का महोत्सव मनाया । जातक जब गर्भ में आया था तब रोग, महामारी आदि शान्त हो गए थे अतः उन्होंने जातक का नाम रखा शान्ति । भूख लगने पर अपने अंगुष्ठ में शक द्वारा रक्षित अमृत का पान कर एवं धात्रियों द्वारा लालित-पालित होकर वे क्रमशः बड़े होने लगे।
(श्लोक १०१-१०५) यद्यपि वे जन्म से ही तीन ज्ञान के अधिकारी थे फिर भी बाल्यकाल को बालकों की तरह ही खेलकूद कर बिताया। क्योंकि समयोचित कृत्य हो यही उचित है । उनके द्वारा अर्हत् को अशातना न हो इसलिए उनके साथ खेलते देव जान-बूझकर हारने की चेष्टा करते; किन्तु वे सहज में ही उन्हें हारने नहीं देते । कारण, जो महान् हैं वे अन्य भाव प्रबल होने पर भी करुणा का परित्याग सहज ही नहीं करते। इस भांति नाना प्रकार की क्रीड़ा करते हुए चालीस धनुष दीर्घ काया वाले प्रभु ने श्री के क्रीड़ा-गृह रूप यौवन को प्राप्त किया।
(श्लोक १०६-१०९) ___ राजा विश्वसेन ने शान्ति के साथ बहुत सी राजकन्याओं का विवाह किया क्योंकि जो महान शक्तिशाली होते हैं वे पूत्र के एक विवाह से सन्तुष्ट नहीं होते। पच्चीस हजार वर्ष पूर्ण होने पर उन्होंने शान्ति को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं धर्म-कार्य में नियुक्त हो गए। शान्तिनाथ भी यथोचित भाव से राज्य संचालन करने लगे। क्योंकि महान् व्यक्तियों का जन्म सबकी रक्षा के लिए ही होता है। तदुपरान्त उन्होंने स्व-पत्नियों के साथ भोग सुख में भी समय व्यतीत किया। क्योंकि भोगावली कर्म रहने पर तीर्थंकर को भी भोग करना पड़ता है।
(श्लोक ११०-११३) उनकी रानियों में यशोमती प्रमुख थी। सूर्य जैसे मेघ में प्रवेश करता है उसी प्रकार उसने एक चक्र को अपने मुख में प्रवेश करते देखा।
(श्लोक ११४) दृढ़रथ का जीव सर्वार्थसिद्धि विमान का आयुष्य पूर्ण कर यशोमती के गर्भ में प्रविष्ट हुआ। उसी समय नींद टूट जाने के कारण यशोमती ने अपने स्वप्न की बात शान्तिनाथ को बतलाई । अवधिज्ञानधारी शान्तिनाथ ने सब कुछ सुनकर कहा-'देवी, पूर्व जन्म में दृढ़रथ नामक मेरे एक छोटा भाई था। उसके जीव ने इस समय सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर तुम्हारे गर्भ में प्रवेश