Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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के राजा थे, अन्य समय महर्द्धिक देव थे । कभी आप बलदेव थे तो कभी अच्युतेन्द्र, कभी अवधिज्ञानी चक्रवर्ती तो कभी ग्रैवेयक विमान अहमिन्द्र | कभी आप मनः पर्यव ज्ञानी राजा थे तो कभी सर्वार्थसिद्धि विमान के अलङ्कार रूप अहमिन्द्र । हे देवश्रेष्ठ ! किस जीवन में आप श्रेष्ठ नहीं रहे ? अब तीर्थङ्कर रूप में जन्म ग्रहण किए आपका गुणगान समाप्तिप्राय हो गया है । आपके गुणों का वर्णन करू ऐसी क्षमता मुझमें नहीं है । जो भी हो अब मैं अपनी इच्छा निवेदन करता हुआ कहता हूं कि आपकी भक्ति मुझे जन्मजन्म में प्राप्त हो ।' ( श्लोक ८५ - ९२ ) इस प्रकार स्तुति कर शक ईशानेन्द्र की गोद से प्रभु को लेकर शीघ्रतापूर्वक महारानी अचिरा के कक्ष में गए और विधिवत् जातक को उनके पार्श्व में सुला दिया । प्रभु के नेत्रों को आनन्द देने के लिए उन्होंने चन्द्रातप पर श्रीदाम गण्डक को बाँध दिया और देवदृष्य वस्त्र और एक जोड़ा कर्णाभरण उपाधान के पास रख दिया । तदुपरान्त जिनकी आज्ञा अलंघ्य हो, ऐसे शक्र ने देवों द्वारा घोषणा करवाई -- यदि कोई हीन उद्देश्य से चाहे वह देव, असुर, मनुष्य कोई भी हो तीर्थङ्कर और तीर्थङ्कर - माता का अनिष्ट करने की चेष्टा करेगा तो उसका मस्तक अर्जक पुष्प की तरह सप्तधा विभक्त हो जाएगा । ( श्लोक ९३-९६) शक्र के आदेश से वैश्रवण ने हस्तिनापुर नगरी में स्वर्ण और रत्नों की वर्षा की। सूर्य जैसे दिन में प्रस्फुटित पद्म की अवस्वापिनी निद्रा हरण कर लेता है उसी प्रकार शक ने अर्हत्-बिम्ब और अर्हत्माता की अवस्वापिनी निद्रा हरण कर ली । तदुपरान्त तीर्थङ्कर के लालन-पालन के लिए पांच धातियां नियुक्त कर वे नन्दीश्वर द्वीप के मेरुपर्वत पर गए। वहां सभी शाश्वत जिनेश्वरों का अष्टा महोत्सव कर अपने-अपने निवास को लौट गए ।
( श्लोक ९७ - १०० ) दिव्य गन्ध, वस्त्र
अवस्वापिनी नींद टूट जाने से रानी ने और अलङ्कार सहित स्वपुत्र एवं एक प्रकाश को देखा। उनकी दासियों ने उत्साहित और आनन्दमना होकर पुत्र जन्म और दिक्कुमारियों द्वारा किए विभिन्न कृत्यों का वृत्तान्त राजा को सुनाया । राजा आनन्दित हुए और उन्हें प्रचुर धन दान दिया। फिर महा