Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उद्यान से पुण्डरीकिनी नगरी आए । कालान्तर में एक दिन जब पौषण कर पौषधशाला में बैठे विज्ञजनों से जिन - प्ररूपित धर्म की व्याख्या कर रहे थे उसी समय एक कपोत मृत्यु भय से करुण नयन लिए काँपता हुआ उनकी गोद में आ बैठा । मनुष्य की भाषा में जब वह विनती करने लगा - 'महाराज, मेरी रक्षा करें ।' तब उन्होंने 'डरो मत, डरो मत' कहकर प्रबोध दिया । उस प्रबोध से शान्त होकर वह करुणा सागर राजा की गोद में पुत्र जैसे पिता की गोद में बैठता है वैसे ही निश्चिन्त होकर आराम से बैठ गया । तभी सर्प के पीछे गरुड़ - सा दौड़ता हुआ एक बाज आया और मनुष्य की भाषा में राजा से निवेदन किया- 'महाराज, यह मेरा आहार है । उसे शीघ्र छोड़ दें ।' राजा ने कहा- 'मैं उसे तुम्हें नहीं सौंपू गा । कारण, आश्रित का परित्याग करना क्षत्रिय धर्म नहीं है । तदुपरान्त तुम्हारे जैसे बुद्धिमान पक्षी को स्व-जीवन के लिए अन्य की हत्या करना उपयुक्त नहीं है । तुम्हारे डैनें से यदि कोई एक पंख नोच ले तो उससे तुम्हें जैसी व्यथा होगी वैसी ही व्यथा दूसरों को भी तुम्हारे इस कार्य से होगी । फिर हत्या का तो कहना ही क्या ? उसको खाकर क्षुधा निवारण की तुम्हारी तृप्ति क्षणिक है; किन्तु उसका तो जीवन ही खत्म हो जाएगा । जो पंचेन्द्रिय जीवों की हत्या करते हैं, उनका मांस खाते हैं, उन्हें नरकवास का असह्य दुःख भोगना पड़ता है । क्षुधार्त्त होने पर भी विवेकवान जीव के लिए एक ओर असीम यातनादायी और दूसरी ओर मुहूर्त भर के लिए सुखप्रद ऐसी जीव हत्या करना उचित नहीं है । अन्य खाद्य से भी तुम्हारी क्षुधा का निवारण हो सकता है । जो पित्ताग्नि चीनी से निवारित हो सकती है वह दूध से भी हो सकती है । जीवहत्या करके जो नरक दुःख भोगना पड़ता है उसे सहन करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं रहता है । अतः जीव हत्या से विरत विरत होकर अहिंसा नीति का पालन करो जिससे जन्म-जन्मान्तरों में सुख प्राप्त हो ।' ( श्लोक २५३ - २६७)
बाज पक्षी ने भी मनुष्य की भाषा में ही प्रत्युत्तर दिया'मेरे भय से यह कपोत आपकी शरण में आया है; किन्तु मैं क्षुधा किसकी शरण में जाऊँ आप ही कहिए ? क्योंकि जो महान् हैं, करुणाशील हैं उनकी करुणा तो सब पर ही होगी । आप जिस