Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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था ने वज्र की भाँति अपना हाथ उठाकर पूत्रों की भर्त्सना की और शत्र सैन्य को भंग करने के लिए शूकर जैसे वापी में प्रविष्ट होता है या मन्थनदण्ड जैसे समुद्र में प्रवेश करता है उसी प्रकार शत्र सैन्य में प्रविष्ट हुआ। अमिततेज के पुत्र उससे शीघ्र ही पराजित हो गए। चतुर व्यक्ति इसी प्रकार शीघ्र ही प्रतिशोध लेते हैं । उन्हें पराजित होते देखकर 'खड़ा रह, खड़ा रह' कहते हुए श्रीविजय युद्ध क्षेत्र में प्रविष्ट हुए। तदुपरान्त दोनों परस्पर एक दूसरे को गर्जना भर्त्सना एवं दूसरे की आघातों से अपनी आत्मरक्षा करते हुए स्वयं का अस्त्रबल और विद्याबल दिखाते हुए भीषण युद्ध करने लगे। देव और असुर भी आकाश में उपस्थित होकर इस युद्ध को देखने लगे।
(श्लोक ३४०-३४५) क्रुद्ध और शक्तिशाली श्री विजय ने तब तलवार के एक ही आघात से कदली वृक्ष की तरह अशनिघोष के दो खण्ड कर डाले । एक मूल से जैसे दो वृन्त उद्गत होते हैं उसी प्रकार उस दो खण्ड से दो अशनिघोष उद्गत हो गए। उन्होंने भीषण चीत्कार कर सैनिकों को त्रस्त व भयभीत कर डाला। श्रीविजय ने जब उन दोनों अशनिघोषों को द्विखण्डित कर दिया तो चार अशनिघोष उत्पन्न हुए । जब श्रीविजय ने उन चारों को द्विखण्डित कर डाला तो आठ अशनिघोष उत्पन्न हो गए। इस प्रकार जितनी बार वे अशनिघोष को द्विखण्डित करते उतनी ही बार अशनिघोष धान के वन्तों की भाँति द्विगुणित होते हुए हजार अशनिघोष में परिणत हो गया। विध्य पर्वत को जैसे चारों ओर से मेघ घेर लेता है उसी भाँति उन्होंने पोतनपति श्रीविजय को घेर लिया। (श्लोक ३४६-३५१)
श्री विजय जब बार-बार अशनिघोष को द्विखण्डित करते हुए क्लान्त हो गए तभी महाज्वाला को अधिगत कर अमिततेज युद्धक्षेत्र में उपस्थित हुए, अशनिघोष की सेना ने, सूर्य-से प्रदीप्त अमिततेज को आते देखकर हरिण जैसे सिंह को देखकर पलायन करता है उसी भाँति पलायन किया। अमिततेज ने महाज्वाला को आदेश दिया कि शत्र सेना से कोई भी भाग न सके। उस विद्या के प्रभाव से विमूढ़ बने उन्होंने अमिततेज की शरण ग्रहण की और उन्होंने भी उन्हें शरण दी। मदमस्त हस्ती की गन्ध पाकर जैसे अन्य हस्ती भाग जाते हैं वैसे ही अमिततेज को आते देख अशनिघोष भागा।