Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कि अग्नि में आकर गिर जाते उनकी हिंसा होती थी। बड़, पीपल, नीम आदि वृक्ष और गाय की तुम पूजा करते । तुम वक्ष में जल सिंचन करते और पानी पिलाने के लिए प्याउ बनवाते । अज्ञान वश होने पर भी तुम ने धर्मबुद्धि से दीर्घकाल तक यह सब काम किया और श्रम द्वारा जीवन निर्वाह किया। एक समय तुमने समृद्धिशाली, जिसका कोई प्रभु नहीं ऐसे एक स्वच्छन्द विद्याधर को आकाश में विमान द्वारा जाते देखा। उसे देखकर तुमने निदान किया मेरी तपस्या का यदि कुछ पूण्य है तो आगामी जीवन में मैं उसकी ऋद्धि को प्राप्त करु । यथा समय तुम्हारी मृत्यु हुयी। तुम निदान के कारण चमरचंचा नगरी के राजा इन्द्रासनी के औरस से उसकी पत्नी असुरी के गर्भ से पुत्र रूप में जन्मे । सुतारा के प्रति तुम में जो प्रेम प्रकट हुआ वह तुम्हारे पूर्व जन्म के सम्बन्ध के कारण । पूर्व जन्म की स्मृति एक सौ वर्षों तक रहती है।'
(श्लोक ४०३-४१७) पूर्व जन्म की कथा श्रवण कर सुतारा अमिततेज, श्रीविजय और अशनिघोष आश्चर्यान्वित हो गए। उन्हें संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया।
(श्लोक ४१८) अमिततेज ने पूछा, 'भगवन, मैं भव्य जीव हं या अभव्य ?' बलभद्र ने प्रत्युत्तर दिया, 'इस भव से नव में भव में तुम इसी भरत क्षेत्र में ३२० . ० हजार राजाओं द्वारा सेवित चौदह रत्न और नवनिधियों के अधिकारी होकर षट्खण्डाधिपति पंचम चक्रवर्ती के रूप में उत्पन्न होंगे। तुम्हारी राज्य सीमा क्षुद्र हिमवन्त पर्वत तक विस्तृत होगी। मगधादि तीर्थों के देव तुम्हारी सेवा करेंगे। उसी जन्म में तुम शान्तिनाथ नामक सोलहवें तीर्थंकर बनोगे । चौसठ इन्द्र तुम्हारी चरण सेवा करेंगे। यही राजा श्रीविजय तुम्हारे पुत्र और तुम्हारे प्रथम गणधर होंगे।' (श्लोक ४१९-४२४)
राजा श्रीविजय और अमिततेज ने यह कथा सुनकर श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किए।
(श्लोक ४२५) ___ तब अशनिघोष महामुनि बलभद्र को श्रद्धा से नत होकर प्रणाम कर बोला-'हे सर्वज्ञ, आपके मुख से अपने पूर्व जन्म की जो कष्टकर कथा सुनी उससे मेरा मन अभी तक भय से कम्पित है। हे भगवन्, कपिल के जन्म में अपनी पत्नी से विच्छिन्न होकर