Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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राजा अभयघोष के निकट आई। रानी सुवर्णतिलका उस पुष्प सम्भार को देखकर राजा से बोली- 'षड् ऋतु के उद्यान में वसन्त का आविर्भाव हुआ है । देव, हम अन्तःपुरिकाओं सहित इस उद्यान में चलें और वसन्त लक्ष्मी का आलिङ्गन करें ।' ठीक उसी समय पृथ्वीसेना वहां आई और बहुमूल्य पुष्पगुच्छ इन्हें पकड़ाया । राजा पुष्पगुच्छ को अपने हाथों में लेकर अवाक् से उसे देखते रहे । तदुपरान्त अन्तःपुरिकाओं को लेकर उसी उद्यान में आए ।
( श्लोक १२४ - १२८ ) 'पति की आज्ञा प्राप्त कर पृथ्वीसेना ने इधर-उधर घूमते हुए एक वृक्षतले ज्ञानी मुनि दन्तमंथन को देखा । भक्ति भरे चित्त से आनन्दित होकर उसने मुनि की वन्दना की और उनकी देशना सुनी। उस देशना को सुनकर उसके हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ । संसार - भय से भीत पृथ्वीसेना ने उसी मुहूर्त में राजा से आदेश लेकर दन्तमंथन मुनि से दीक्षा ग्रहण कर ली । राजा अभयघोष पृथ्वीसेना के चारित्र की प्रशंसा कर राज प्रासाद में लौट आए । ( श्लोक १२९ - १३२) 'एक दिन अभयघोष जब प्रासाद की छत पर विश्रामरत सूर्य की तरह अपने रत्न - सिंहासन पर बैठे थे तब अनन्तमुनि (भावी तीर्थङ्कर) को छद्मस्थावस्था में प्रासाद में प्रवेश करते देखा । वह शीघ्रतापूर्वक आहार लेकर उनके सम्मुख आए और वन्दना की । अनन्त मुनि ने भिक्षा ग्रहण कर उपवास का पारणा किया । देवों ने रत्न वर्षादि पांच दिव्य प्रकट किए । पारणे के पश्चात् अनन्त मुनि अन्यत्र विहार कर गए। कारण, तीर्थङ्कर भी छद्मस्थावस्था साधारण साधु की तरह एक स्थान पर अवस्थित नहीं रहते । ( श्लोक १३३ - १३७ ) 'कालान्तर में केवलज्ञान प्राप्त कर तीर्थंकर अनन्त विचरण करते हुए एक दिन वज्रपुरी में पहुंचे । अभयघोष उनके आगमन का संवाद प्राप्त कर उन्हें वन्दना करने गए और तीन बार प्रदक्षिणा देकर उनकी स्तुति की एवं भवनाशकारी उनकी देशना सुनी । देशना शेष होने पर अभयघोष उन्हें वन्दन कर बोले- 'भगवन्, मेरे भाग्योदय से कल्पवृक्ष - से आप यहाँ उपस्थित हुए हैं । आपका आगमन अन्य के कल्याण के लिए ही होता है । हे दयानिधि, हे