Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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[३३ सातवें में धूमहीन अग्नि देखी जिसकी शिखाएँ आकाश में विस्तृत होकर आँखों को आनन्द प्रदान कर रही थीं। (श्लोक १९-२७)
निद्रा भङ्ग होने पर रानी ने राजा को अपना स्वप्न सुनाया। वे बोले, इन स्वप्नों के फलस्वरूप तुम्हारा पुत्र वासुदेव होगा।
(श्लोक २८) यथा समय रानी ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। देखने में आनन्द प्रदानकारी उस जातक के शरीर का रंग नीला पद्म-सा या मेघ धारणकारी आकाश-सा था। राजा ने महोत्सव कर अनन्त शक्ति सम्पन्न अनुद्धरा के पुत्र का नाम अनन्तवीर्य रखा ।
(श्लोक २९-३०) हंस जैसे एक कमल से दूसरे कमल पर जाता है उसी प्रकार एक धाय से दूसरी धाय की गोद में जाते हुए वह क्रमशः बड़ा हुआ। क्रमशः बड़ा होते हुए वह अपने बड़े भाई के साथ मानो वह उसका समवयस्क हो इस प्रकार क्रीड़ा करने लगा। सुन्दर आकृति के कारण लड़कियाँ सदैव उसका मुख निरखती रहतीं। शुभ्र और कृष्ण वर्ण के कारण दोनों भाई ऐसे प्रतीत होते मानों शरद् और वर्षाकालीन मेघ एक स्थान पर उदित हुए हों। उन्होंने समस्त ज्ञान-विज्ञान सहज ही प्राप्त कर लिया कारण ऐसे व्यक्तियों को पूर्व जन्म का ज्ञान सहज रूप से ही आ जाता है। फिर भी इन्होंने गुरु से शिक्षा ग्रहण की ताकि उनका ज्ञानार्जन गुरु की जीविका का कारण बने। श्री के निवास रूप इन्होंने क्रमशः नारियों को आकर्षित करने वाले इन्द्रजाल या मंत्र रूप यौवन को प्राप्त किया।
(श्लोक ३१-३६) एक समय नाना लब्धि-सम्पन्न मूनि स्वयंप्रभ वहाँ आए और एक उद्यान में अवस्थित हो गए। उसी समय स्तिमिसागर जो कि अश्व-क्रीड़ा में निपुण थे एक दिन अश्व आरोहण कर नगर के बाहर गए। रेवन्त की भाँति निपुण वे विभिन्न क्रीड़ाओं से क्लान्त होकर उसी उद्यान में प्रविष्ट हुए। उस उद्यान में प्रवेश करते ही राजा का मन आनन्दपूरित हो उठा। उन्हें लगा जैसे नन्दन वन ही पृथ्वी पर अवतरित हो गया है। वृक्ष राजि की हरीतिमा उन्हें ऐसी प्रतीत हुई मानो आकाश का मेघ ही वहाँ पूजीभूत हो गया है। जल प्रस्रवण देख कर मन में हुआ जैसे वे एक पर्वत की