Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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मख से मझे उन स्वप्नों के विषय में बतलाया। मैंने बताया कि तुम त्रिखण्ड के अधिपति अर्द्ध-चक्री रूप पुत्र को जन्म दोगी।
(श्लोक २९०-२९७) _ 'यथा समय रानी ने सर्वसुलक्षणयुक्त देव-से सून्दर एवं रत्नों की खान-से एक पुत्र को जन्म दिया। वह जब गर्भ में था तब मैंने शत्रुओं पर सहज ही विजय पाई थी। अतः मैंने उसका नाम दमितारि रख दिया। धीरे-धीरे वह बड़ा हुआ-विद्याएँ अजित की और सौन्दर्य द्वारा परिश्रुत यौवन प्राप्त किया।
(श्लोक २९८-३००) _ 'एक दिन विचरण करते हुए संसार की शान्ति के कारण भगवान शान्तिनाथ वहाँ आए। वहाँ उनके समवसरण की रचना हुई। मैं वन्दना कर उनके सम्मुख बैठ गया और देशना सुनी। उनकी देशना से संसार-विरक्त होकर मैंने दमितारि को सिंहासन पर बैठाया और भगवान शान्तिनाथ से दीक्षा ग्रहण कर ली। और ग्रहण एवं आसेवना में अर्थात् सूत्राध्ययन में निमग्न हो गया। उसी पर्वत पर एक वर्ष की प्रतिमा धारण किए मैं अवस्थित था। वहीं वसन्तोत्सव के अन्त में घाती कर्म क्षय हो जाने से मझे केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। दमितारि ने राजा होने के पश्चात् प्रतिविष्णु होने के कारण चक्र प्राप्त किया और त्रिखण्ड भूमि का अधिपति बना। तुम श्रीदत्ता के जीव ने दमितारि के औरस से रानी मदिरा के गर्भ से कनकश्री के रूप में जन्म ग्रहण किया। श्रीदत्ता अपना सन्देह व्यक्त किए बिना और उसकी आलोचना किए बिना ही मृत्यु को प्राप्त हुई थी अतः उसके परिणामस्वरूप अब तुम्हें वान्धव विच्छेद
और पिता की मृत्यु का दुःख भोग करना पड़ रहा है। धर्म का सामान्य-सा अतिचार भी महान दुःख का कारण बनता है। तुम ऐसा कार्य अब कभी मत करना ताकि उसकी पुनरावृत्ति हो । अब तुम पाँच अतिचार रहित सम्यक्त्व ग्रहण करो।' (श्लोक ३०१-३०९)
___संसार से वीतश्रद्ध होकर कनकश्री वासुदेव और बलदेव से बोली-'यदि सामान्य-सा पाप भी इतना दुःखजनक होता है तो सांसारिक सुख भोगों का पाप तो न जाने कितने दुःखों का आकर है। सामान्य-से छिद्र के कारण नौका जैसे जल में डब जाती है उसी प्रकार सामान्य-से पाप के कारण मनुष्य दुःख रूप समुद्र में निमज्जित