Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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कर रहे हैं । तरुण पुष्पधन्वा के गौरव में पुष्पों का कर्णाभरण कण्ठमाला और भुजाओं में अंगद धारण कर रहे हैं । महाराज, देवी लक्ष्मीवती मेरे माध्यम से आपको सूचित कर रही हैं बसन्त, बसन्त-सखा के रूप में आविर्भूत हुआ है । नन्दन वन से सुरनिपात उद्यान में जाकर उनकी बसन्त की नवीन शोभा देखने की इच्छा हुई है।' ( श्लोक ४०-४७ ) 'ऐसा ही होगा' कहकर राजा तत्क्षण अनुचरों सहित अनंग के निवास रूप उस उद्यान में गए। नक्षत्र जैसे चन्द्र का अनुगमन करते हैं वैसे ही लक्ष्मीवती आदि सात सौ पत्नियों ने उनका अनुसरण किया । उनके संग राजा कभी योगी की तरह नत होकर कभी सीधे खड़े होकर उस उद्यान में भ्रमण करने लगे । छाया-तरुओं की पत्रावलियाँ सघन रूप से मिल जाने के कारण वे छत्र से लग रहे थे । पुष्पों के विकसित हो जाने के कारण मानो वहाँ सुगन्ध का साम्राज्य प्रतिष्ठित हो गया था । पुष्पों की केशर झरने से वापियों का जल मलिन हो गया था । फल - भार से वृक्षों की शाखाएँ भूमि का स्पर्श कर रही थीं । भ्रमण से क्लान्त होकर फिर अन्तः पुरिकाओं के भी क्लान्त हो जाने के कारण वज्रायुध जलक्रीड़ा के लिए प्रियदर्शन नामक सरोवर के पास गए । क्लान्ति अपसारण के लिए उन्होंने पत्नियों सहित नन्दीश्वर द्वीप के जलाशय से सुन्दर उस जलाशय में प्रवेश किया । पार्वत्य नदी में गजराज जैसे क्रीड़ा करता है वैसे ही बज्रायुध अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा करने लगे । जलक्रीड़ा में उत्क्षिप्त जलकणों और मुक्तामाला की मुक्ता
कोई अन्तर ही नहीं रहा । अन्तःपुरिकाओं के मुख कमल और स्वर्ण-कमलों का यह मिलन दीर्घ दिनों के पश्चात् बान्धव-मिलन-सा प्रतिभाषित होने लगा । अन्तःपुरिकाओं द्वारा उत्क्षिप्त जल और पिचकारी-सा छोड़ा मुख जल मानो पुष्पायुध के आयुध में परिणत हो गया था । सुन्दरियों की लहराती हुई वेणियों ने मीन केतु की शोभा धारण कर रखी थी । जलक्रीड़ा से क्लान्त होकर जब वे तट पर विश्राम कर रही थीं तो वे जलदेवियों-सी लग रही थीं । सुन्दरियों के नेत्रों में जलकण गिर जाने से वे रक्तवर्ण हो रहे थे मानो प्रतिस्पर्द्धा रक्तकमलों का उन्होंने रूप धारण कर लिया था । हस्तियों के मदस्राव से पार्वत्य नदी का जल जैसे सुगन्धित हो जाता