Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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है वैसे ही मृगनयनियों का कस्तूरी विलेपन धुल जाने से वह सरोवरजल सुगन्धित हो गया था। वज्रायुध जब इस प्रकार जलक्रीड़ा में मग्न थे उस समय उनके शत्रुगण मानो एक प्रकार निर्भय हो गए थे।
(श्लोक ४८-६४) __ उनके पूर्व जन्म का शत्रु दमितारि का जीव नाना भव भ्रमण कर विद्युद् द्रष्टा नामक एक देव रूप में उत्पन्न हुआ था। वह उसे समय वहाँ आया और वज्रायुध को देखकर पूर्व जन्म का क्रोध उद्दीप्त हो जाने से देख यह कैसे बचता है कहता हुआ वज्रायुध और अन्तःपुरिकाओं पर एक मुट्ठी अनाज की तरह उन्हें पीस डालने के लिए एक पहाड़ उठाकर फेंका। महावत जैसे हस्ती को बांधता है उसी प्रकार उस दुष्ट ने उनके पैरों को वरुण पाश की तत इन्द्रजाल के पास से बाँध दिया। वज्रायुध ने बज्री जैसे बज्राघात से पहाड़ को चूर-चूर कर देता है उसी प्रकार मुष्ठि प्रहार से उस पहाड़ को चूर-चूर कर दिया। शेषनाग जैसे पाताल से निकलते हैं उसी प्रकार पत्नियों सहित वे महाबाहु फिर उस सरोवर से निकले।
(श्लोक ६५-७०) महाविदेह में सद्यजात जिनेश्वर की वन्दना कर शक्र उस समय नन्दीश्वर द्वीप में अर्हत् पूजा करने जा रहे थे। उन्होंने वज्रायुध को सरोवर से निकलते देख इस जन्म में चक्रवर्ती होंगे
और भविष्य में तीर्थंकर ऐसा सोचकर उनकी उपासना की। कारण भविष्य में होने वाले तीर्थंकर भी अतीत तीर्थंकर की तरह हो वन्दनीय होते हैं । आप भाग्यवान हैं। जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में आप सोलहवें तीर्थंकर होंगे' ऐसा कहकर वे चले गए । बज्रायुध भी स्वपत्नियों सहित मनोमत क्रीड़ा कर उन्हें लिए अनुचरों सहित नगर को लौट गए।
(श्लोक ७१-७४) ___ लौकान्तिक देवों से उबुद्ध होकर प्रवज्या ग्रहण करने के लिए क्षेमंकर ने वज्रायुध को सिंहासन पर बैठाया । एक वर्ष तक वर्षीदान देकर उन्होंने दीक्षा ग्रहण कर ली और अभिग्रह कर कठिन तपस्या करने लगे। इस प्रकार घाती कर्मों के क्षय हो जाने से उन्हें केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ और इन्द्र ने आकर केवल ज्ञान उत्सव मनाया। समवसरण रचित हो जाने पर यथा स्थान बैठे वज्री, वज्रायुध और अन्य अन्य को उन्होंने देशना दी । देशना सुनकर बहुत