Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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लगा ।
की पुतलियाँ घूमने लगीं, किसी का हाथ काँपने लगा, किसी का गला खड़-खड़ करने लगा, कोई विवर्ण हो गया, कोई आँसू गिराने ( श्लोक १३६ - १३७) उन्होंने कभी दुर्गन्ध की सृष्टि कर, उल्टी कर, घाव से कीड़ा निकालकर मनुष्यों के मन को जुगुप्सा से भर दिया । यह देख किसी देह सिकोड़ ली, किसी का हृदय धड़कने लगा, किसी ने नाक और मुँह ढक लिया, किसी ने थूक गिराया, किसी ने ओठ फड़काया, किसी ने अंगुली चटकायी : ( श्लोक १३८ - १३९ ) कभी अप्राकृतिक दृश्य दिखाकर, मनोरथ सिद्ध कर, कभी इन्द्रजाल दिखाकर उन्होंने दर्शकों को आश्चर्य चकित कर दिया । किसी का मुँह खुल गया, किसी की दृष्टि अपलक हो गई, किसी के शरीर पर पसीना हो आया, किसी की आँखें अश्रुपूर्ण हो गईं, किसी का देह रोमांचित हो गया, कोई वाह-वाह करने लगा । ( श्लोक १४०-१४१ )
कभी मूल और उत्तम गुणों का ध्यान दिखाकर, स्वाध्याय कर, उत्तम गुरु दिखाकर, तीर्थंकरों की पूजा कर संसार के प्रति अनासक्ति, सांसारिक स्थिति से भय और तत्त्वज्ञान की अवतारणा कर, जो सांसारिक विषय में आसक्त थे उनके मन को भी उन्होंने प्रशान्त कर दिया । ( श्लोक १४२ - १४३)
जब उन्होंने समस्त रसों की अवतारणा की तो यथारूप अभिनय के कारण ऐसा लगा मानो वे उन उन रसों के, प्रतिरूप हों । दर्शकों ने भी चित्रार्पित होकर यह सब देखा ।
( श्लोक १४४-१४५) राजा भी उनकी यह अद्भुत कला देखकर मुग्ध हो गए । उन्हें लगा जैसे वे संसार के रत्न ही हैं । उनके कनकश्री नामक एक तरुण कन्या थी । उन्होंने राजकुमारी की अभिनय - शिक्षा का दायित्व उन दोनों दासियों को अर्पित किया । कनकश्री का मुख चाँद सा सुन्दर था, नेत्र त्रस्त हिरणी - से, ओष्ठ पके विम्बफल - से, गला शंख-सा, हाथ मृणाल से, स्तन स्वर्ण कलश-से, कटिदेश बज्र के मध्य भाग-सा क्षीण, नाभि सरोवर-सी गहन, नितम्ब समुद्र सैकत से विस्तृत, जाँघें तरुण हस्तिनी-सी, घुटने हरिण से, हाथ और पैरों के तलवे रक्ताभ कमल से थे । उसकी समस्त देह ही मानो