Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३. यथालघु प्रायश्चित्त-बीस दिन पर्यन्त-आचाम्ल।' १. लघुस्वक प्रायश्चित्त-पन्द्रह दिन पर्यन्त एक स्थानक-(एगलठाणो) २. लघुस्वतरक प्रायश्चित्त-दस दिन पर्यन्त-पूर्वार्ध (दो पोरसी) ३. यथालघुस्वक प्रायश्चित्त–पाँच दिन पर्यन्त-निर्विकृतिक (विकृतिरहित आहार)। गुरु प्रायश्चित्त तप के तीन विभाग१. जघन्य, २. मध्यम और ३. उत्कष्ट। १. जघन्य गुरु प्रायश्चित्त-एक मासिक और द्वैमासिक। २. मध्यम गुरु प्रायश्चित्त-त्रैमासिक और चातुर्मासिक। ३. उत्कृष्ट गुरु प्रायश्चित्त-पाँचमासिक और पाण्मासिक। जघन्य गुरु प्रायश्चित्त तप है-एक मास या दो मास पर्यन्त निरन्तर अट्ठम तप करना। मध्यम गुरु प्रायश्चित्त तप है-तीन माह या चार मास पर्यन्त निरन्तर दशम तप करना। उत्कृष्ट गुरु प्रायश्चित्त तप है-पाँच मास या छह मास पर्यन्त निरन्तर द्वादशम तप करना।
इसी प्रकार लघु प्रायश्चित्त तप के और लघुस्वक तप के भी तीन-तीन विभाग हैं। तथा तप की आराधना भी पूर्वोक्त मास क्रम से ही की जाती है।
उत्कृष्ट गुरु प्रायश्चित्त के तीन विभाग१. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट, २. उत्कृष्ट-मध्यम, ३. उत्कृष्ट-जघन्य। १. उत्कृष्ट-उत्कृष्ट गुरु प्रायश्चित-पाँच मास या छह मास पर्यन्त निरन्तर द्वादशम तप करना। २. उत्कृष्ट-मध्यम गुरु प्रायश्चित्त-तीन मास या चार मास पर्यन्त निरन्तर द्वादशम तप करना। ३. उत्कृष्ट-जघन्य गुरु प्रायश्चित्त-एक माह या दो मास पर्यन्त निरन्तर द्वादशम तप करना।
इसी प्रकार मध्यम गुरु प्रायश्चित्त के तीन विभाग और जघन्य गुरु प्रायश्चित्त के भी तीन विभाग हैं। तपाराधना की पूर्वोक्त क्रम से ही की जाती है।
उत्कृष्ट लघु प्रायश्चित्त, मध्यम लघु प्रायश्चित्त, जघन्य लघु प्रायश्चित्त के तीन, तीन विभाग तथा उत्कृष्ट लघुस्वक प्रायश्चित्त, मध्यम लघुस्वक प्रायश्चित्त और जघन्य लघुस्वक प्रायश्चित्त के भी तीन, तीन विभाग हैं। तपाराधना भी पूर्वोक्त मासक्रम से है। विशेष जानने के लिये व्यवहारभाष्य का अध्ययन करना चाहिये। व्यवहार (प्रायश्चित्त) की उपादेयता
प्र०-भगवन् ! प्रायश्चित्त से जीव को क्या लाभ होता है?
१. बीस दिन में दस आचाम्ल होते हैं-इनमें दस दिन तपश्चर्या के और दस दिन पारणे के होते हैं। २. पन्द्रह दिन एकस्थानक निरन्तर किये जाते हैं। ३. दस दिन पूर्वार्ध निरन्तर किये जाते हैं। ४. पाँच दिन निर्विकृतिक आहार निरन्तर किया जाता है। ५. बृह० उद्दे० ५ भाष्य गाथा ६०३९-६०४४
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