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(५) जाते हैं और इधर-उधरका दशरा-मसरा करके मार्गको कंटकाकीर्ण बना देते हैं। कितनेही विषय ऐसे हैं जिनका विधान पाक्षिकके लिए है और नैष्ठिकके लिए उनका निषेध है फिरभी वे बेसमझीके कारण नैष्ठिकके निषेधका उपयोग पाक्षिकके लिए भी करने लगते हैं । दृष्टान्तके लिए शासनदेवोंकी सेवा-सुश्रूषाको लीजिये । नैष्ठिक आपत्तिके समय शासन देवोंकी सेवा-सुश्रूषा नहीं करता यह निषेध नैष्ठिकके लिए है न कि पाक्षिकके लिए क्योंकि पाक्षिक आपत्ति के समय शासन देवोंकी सेवा-सुश्रूषा करभी सकता है। ऐसा होते हुए भी वे लोग नैष्ठिकके इस कथनको पाक्षिकके साथ भी लगा लेते हैं। दूसरी बात यह है कि नैष्ठिकके लिए जो यह निषेध है वह आपत्तिके समय है न कि जिनेन्द्र देव की पूजा करते समय, फिर भी उसका उपयोग हर समय सभीके लिए कर दिया जाता है। यदि ऐसा करने वाले अपेक्षाओंके साथ साथ विधि-निषेध करें तो बड़ा अच्छा हो । अत एव पाठकोंसे निवेदन है कि वे ग्रन्थमें वर्णन किये गये विषयोंको समझनेमें यह खयाल रक्खें कि अन्यत्र इस बात का निषेध किसके लिए है
और यहां पर उसका विधान किसके लिए है । अगर वे अपेक्षाओं को छोड़ देंगे तो वही गुटाला तदवस्थ बना रहेगा, बिना अपेक्षाके निश्चयनयसे सारा व्यावहारिक क्रियाकांडभी मिथ्या कहा जा सकता है । अत एव प्रत्येक व्यक्तिको ग्रन्थ पढ़ते समय अपेक्षा ऑको ध्यानमें रखना चाहिए।
इस ग्रन्थ के कितनेही विषय आक्षेप्य बना दिये हैं जिन पर अत्यधिक आक्षेप किये जाते हैं । यदि जैनसिद्धान्तका गहरा आलोडन किया जाय और उस पर विश्वास रक्खा जाय तो वे सब आक्षेप सुलझ सकते हैं । जितने भरभी आक्षेप किये जाते हैं वे सब अपना पक्ष बढ़ानेके लिए बिनाही समझे किये जाते हैं उनका यहां उत्तर देना व्यर्थ होगा।
विशेष-विवेचन । यह शास्त्र-प्रसिद्ध है कि
परस्पराविरोधेन त्रिवर्गों यदि सेव्यते।
अनर्गलमतः सौख्यमपवर्गोऽप्यनुक्रमात् ॥ एक दूसरे वर्गको बाधा न पहुंचाते हुए यदि धर्म, अर्थ और कामका सेवन किया जाय तो उससे अनर्गल सुख और अनुक्रमसे मोक्षभी प्राप्त होता है । जब तीनोंके सेवनसे अनर्गल सुख
और अनुक्रमसे मोक्ष बताया गया है तब तीनोंका स्वरूप और. उनके सेवनका उपायभी अवश्य बताया जाना चाहिए । अत एव दुनियांमें धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र और कामशास्त्र स्वतंत्र प्रसिद्ध हैं। कोई शास्त्र धर्मोपदेश देनेवाले हैं, कोई अर्थोपार्जनका उपाय बताते हैं और कोई काम सेवनकी विधि बताते हैं । कोई ऐसे भी हैं जिनमें धर्मका उपदेश मुख्य रहता है और अर्थ और कामका उपदेश गौण रहता है । यह त्रिवर्णाचार एक ऐसा ग्रन्थ है जो तीनों वर्गों की सुबहसे शाम तककी सारी क्रियाओंको बताता है । अत एव इन क्रियाओं अर्थोपार्जन और काम सेवनकी विधिभी आजाती है । यही कारण है कि इस ग्रन्थमें बीजरूपसे धनकमानेकी और कामसेवनकी विधिभी बताई गई है। उसे देख कर बहुतसे लोग चिड़ जाते हैं कि धर्म शास्त्रों में कामका वर्णन क्यों ? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि यह ग्रन्थ केवल धर्मका उपदेश करनेवालाही