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तत्त्वार्थवार्तिक
[१११७-१८ से होता है । हमलोगोंको अनिःसृत और अनुक्त अवग्रहादि श्रुतज्ञानकी अपेक्षासे होते हैं क्योंकि इनमें परोपदेश अपेक्षित होता है । शास्त्रमें श्रुतज्ञानके भेदप्रभेदके प्रकरण में लब्ध्यक्ष के चक्षु श्रोत्र घ्राण रसना स्पर्शन और मनके भेदसे छह भेद किये हैं, इसलिए इन लब्ध्यक्षररूप श्रुतज्ञानोंसे उन उन इन्द्रियों द्वारा अनिःसृत और अनुक्त आदिका विशिष्ट अवग्रहादि ज्ञान होता रहता है। ये बहु आदि भेद पदार्थके हैं
अर्थस्य ॥१७॥ चक्षु आदि इन्द्रियों के विषयभूत पदार्थको अर्थ कहते हैं ।
११ जो बाह्य और आभ्यन्तर निमित्तोंसे समुत्पन्न पर्यायोंका आधार हो वह द्रव्य अर्थ है।
२ 'अर्थ'के ग्रहण करनेसे नैयायिकादिके इस कथनका निराकरण हो जाता है कि 'रूपादि गुण ही इन्द्रियोंके द्वारा गृहीत होते हैं'; क्योंकि अमूर्त रूपादि गुणोंका इन्द्रियोंसे सम्बन्ध ही नहीं हो सकता । समुदाय अवस्थामें भी जब गुण अपनी सक्ष्मता नहीं छोड़ते तब उनका ग्रहण कैसे हो सकता है ? चूंकि अर्थसे रूपादि अभिन्न है, अतः अर्थके ग्रहण होने पर भी 'रूपको देखा, गन्ध सूंघी' आदि प्रयोग हो जाते हैं।
३-५ प्रश्न-इनके होनेपर मतिज्ञान होता है अत: 'अर्थे' ऐसा सप्तम्यन्त सूत्र बनाना चाहिये ?
उत्तर-यह कोई एकान्त नियम नहीं है कि अर्थके होनेपर ज्ञान होता ही है । तलघरमें बढ़े हुए बालकको 'घट' के सामने रहनेपर भी घटज्ञान नहीं होता। कारक विवक्षाके अनुसार होता है, अतः अधिकरण विवक्षा न रहनेके कारण सप्तमी न होकर क्रियाकारक सम्बन्धकी विवक्षामें सम्बन्धार्थक षष्ठीका प्रयोग हुआ है। अवग्रह आदि क्रियाविशेष बहु आदि रूप अर्थके होते हैं।
६-८ बहु आदिके साथ सामानाधिकरण्य होनेसे 'अर्थानाम्' ऐसा बहुवचनान्त प्रयोग होना चाहिये ?
उत्तर-अवग्रहादिके साथ अर्थका सम्बन्ध किया जाना चाहिये । अवग्रहादि 'किसके' ऐसे प्रश्नका उत्तर है 'अर्थके' । अथवा बहु आदि सभी ज्ञानके विषय होने के कारण अर्थ हैं, अतः सामान्य दृष्टिसे एकवचन निर्देश कर दिया है। अथवा बहु आदि एक एकसे एकवचनवाले 'अर्थ'का सम्बन्ध कर लेना चाहिये। अवग्रहादिकी विशेषता
व्यअनस्यावग्रहः ॥१८॥ व्यञ्जन-अव्यक्त शब्दादि पदार्थ, अर्थात् जिनका इन्द्रियोंसे सम्बन्ध होकर ज्ञान होता है ऐसे प्राप्त पदार्थ । इनका अवग्रह ही होता है ईहादिक नहीं।
१-जैसे 'अपो भक्षयति-पानी पीता है' इस वाक्यमें 'एवकार' न रहनेपर भी 'पानी ही पीता है ऐसा अवधारणात्मक ज्ञान हो जाता है। उसी तरह सूत्र में एवकार न देनेपर भी 'अवग्रह ही होता है' ऐसा अवधारण समझ लेना चाहिये ।
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