Book Title: Tattvarthvarttikam Part 1
Author(s): Bhattalankardev, Mahendramuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 421
________________ ३९८ तस्वार्थवार्तिक [१३८ पुद्गल, आकाशके प्रदेश, धर्म, अधर्म और अनन्त अगुरुलघुगुण जोड़े। फिर तीन बार वगितसंवर्गित करे। तब भी उत्कृष्ट अनन्तानन्त नहीं होता। अतः उसमें केवलज्ञान और केवलदर्शनको जोड़े तब उत्कृष्ट अनन्तानन्त होता है। उससे एक कम अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त होता है। जहां अनन्तानन्तका प्रकरण आता है वहाँ अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त लेना चाहिए। ७ उपमा प्रमाण आठ प्रकारका ह-पल्य, सागर, सूची, प्रतर, घनांगुल, जगच्छे णी, लोकप्रतर और लोक । आदि अन्तसे रहित अतीन्द्रिय एक रस एकगन्ध एक रूप और दो स्पर्शवाला अविभागी द्रव्य परमाणु कहलाता है। अनन्तानन्त परमाणुओंके संघात की एक उत्संज्ञासंज्ञा। आठ उत्संज्ञासंज्ञाकी एक संज्ञासंज्ञा। आठ संज्ञासंज्ञाकी एक त्रुटिरेणु। आठ त्रुटिरेणुकी एक त्रसरेणु। आठ त्रसरेणुकी एक रथरेणु । आठ रथरेणुका एक देवकुरु उत्तरकुरुके मनुष्यका बालाग्र। उन आठ बालानोंका एक रम्यक और हरिवर्षके मनुष्योंका बालाग्र । उन आठ बालगोंका एक हैरण्यवत और हैमवत क्षेत्रके मनुष्योंका बालाग्र । उन आठ बालागोंका एक भरत ऐरावत और विदेहके मनुष्योंका बालान। उन आठ बालानोंकी एक लीख । आठ लीखकी एक जूं । आठ जूंका एक मध्य । आठ यवमध्योंका एक उत्सेधांगुल। इससे नारक तिर्यञ्च देव मनुष्य और अकृत्रिम चैत्यालयोंकी प्रतिमाओंका माप होता है। ५०० उत्सेधांगुलका एक प्रमाणांगुल। यही अवसर्पिणीके प्रथम चक्रवर्तीका आत्मांगुल होता है। उस समय इसीसे गाँव नगर आदिका माप किया जाता है। दूसरे युगोंमें उस उस युगके मनुष्योंके आत्मांगुलसे ग्राम नगर आदिका माप किया जाता है। प्रमाणांगुलसे द्वीप समुद्र वेदिका पर्वत विमान नरक प्रस्तार आदि अकृत्रिम द्रव्योंकी लम्बाई चौड़ाई मापी जाती है। छह अंगुलका एक पाद । बारह अंगुलका एक बीता। दो बीतेका एक हाथ । दो हाथका एक किष्कु । दो किष्कुका एक दंड। दो हजार दंडका एक गव्यूत । चार गव्यूतका एक योजन होता है। १८ पल्य तीन प्रकारका है-व्यवहारपल्य उद्धारपल्य और अद्धापल्य । व्यवहारपल्य आगेके पल्योंके व्यवहारमें कारण होता है, उससे अन्य किसीका परिच्छेद नहीं होता। उद्धारपल्यके लोमच्छेदोंसे द्वीप समुद्रोंकी गिनती की जाती है। अद्धापल्यसे स्थितिका परिच्छेद किया जाता है। प्रमाणांगुलसे परिमित एक योजन लम्बे चौड़े गहरे तीन गड्ढे किये जायें। वे सात दिन तककी आयु वाले भेड़ोंके रोमके अतिसूक्ष्म टुकड़ोंसे भरे जायं। एक एक सौ वर्ष में एक एक रोमका टुकड़ा निकाला जाय। जितने समयमें वह खाली हो उतना काल व्यवहारपल्य कहलाता है। उन्हीं रोमच्छेदोंको यदि प्रत्येकको असंख्यात करोड वर्षके समयोंसे छिन्न कर दिया जाय और प्रत्येक समयमें एक एक रोम छेदको निकाला जाय तो जितने समयमें वह खाली होगा वह समय उदारपल्य कहलाता है। दस कोड़ाकोड़ी उद्धारपल्योंका एक उद्धारसागर होता है। ढाई उवारसागरोंके जितने रोमच्छेद होते हैं उसने ही द्वीप समुद्र हैं । उद्धारपल्यके रोमच्छेदोंको सो वर्षके समयोंसे छेद करके एक एक समयमें एक एक रोमच्छेदको निकालनेपर जितने समयमें वह खाली हो उतना समय अद्धापल्य कहलाता है। दस कोडाकोड़ी अदापल्योंका एक अद्धासागर होता है । दस कोडाकोड़ी अद्धासागरोंकी एक अवसर्पिणी होती है और इतनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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