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१।३०] हिन्दी-सार
३२७ शुक्ल कृष्ण आदि रूप कड़वा चिरपरा कषायला आदि रस आदि परस्पर विरोधी हैं। इसी तरह धर्माधर्मादि द्रव्योंमें कुछ सामान्यधर्म अविरोधी हैं और विशेषधर्म विरोधी होते हैं।
५-६ द्रव्य और पर्याय शब्द का इतरेतर योग द्वन्द्व समास है । द्वन्द्व समास जैसे प्लक्ष और न्यग्रोध आदि भिन्न पदार्थों में होता है उसी तरह कथञ्चिद् भिन्न गो और गोत्व आदि में भी होता है। गो और गोत्व सामान्य और विशेषरूपसे कथञ्चिद् अभिन्न हैं। 'द्रव्याणां पर्यायाः' ऐसा षष्ठी तत्पुरुष समास करके द्रव्योंको पर्यायका विशेषण बनाना उचित नहीं है। क्योंकि ऐसी दशामें द्रव्य शब्द ही निरर्थक हो जायगा, कारण अद्रव्य की तो पर्याय होती नहीं है। फिर, तत्पुषसमासमें उत्तर पदार्थ प्रधान होता है अतः 'केवलज्ञानके द्वारा पर्यायें ही जानी जाती हैं, द्रव्य नहीं यह अनिष्ट प्रसंग प्राप्त होता है। 'सब पर्यायोंके जान लेनेपर द्रव्य तो जान ही लिया जाता है' यह समाधान भी ठीक नहीं है क्योंकि इस पक्षमें द्रव्यग्रहणकी अनर्थकता ज्योंकी त्यों बनी रहती है। अतः उभयपदार्थ प्रधान द्वन्द्व समास ही यहां ठीक है । 'पर्यायके बिना द्रव्य उपलब्ध नहीं होता' अतः द्वन्द्व समासमें भी द्रव्यग्रहण निरर्थक है' यह शंका ठीक नहीं है क्योंकि संज्ञा लक्षण प्रयोजन आदि की दृष्टिसे द्रव्य पर्यायमें विभिन्नता है।
६ ९ लोक और अलोक में त्रिकाल विषयक जितने अनन्तानन्त द्रव्य और पर्याय हैं उन सभीमें केवलज्ञानकी प्रवृत्ति होती है। जितना यह लोक है उतने यदि अनन्त भी लोक हों तो उन्हें भी केवलज्ञान जान सकता है। एक साथ कितने ज्ञान होते है ?
एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुयः ॥३०॥ एक साथ एक आत्मामें एक से लगाकर चार ज्ञान तक हो सकते हैं ।
६१ एक शब्दके संख्या भिन्नता अकेलापन प्रथम प्रधान आदि अनेक अर्थ हैं पर यहां 'प्रथम' अर्थ विवक्षित है।
२-३ आदि शब्दके भी व्यवस्था प्रकार सामीप्य अवयव आदि अनेक अर्थ हैं, यहाँ अवयव अर्थ की विवक्षा है। अर्थात् एक-प्रथम परोक्षज्ञानका आदि-अवयव मतिज्ञान । अथवा, आदि शब्द समीपार्थक है। इसका अर्थ है मतिज्ञानका आदिसमीप-श्रुतज्ञान ।
४-प्रश्न-यदि मतिज्ञान का समीप 'श्रुतज्ञान' आदि शब्दसे लिया जाता है तो इसमें मतिज्ञान छूट जायगा ? उत्तर-चूंकि मति और श्रुत सदा अव्यभिचारी हैं, नारद पर्वत की तरह एक दूसरेका साथ नहीं छोड़ते अतः एकके ग्रहणसे दूसरेका ग्रहण ही हो जाता है।
६५-७ जैसे 'ऊंटके मुख की तरह मुख है जिसका वह उष्ट्रमुख' इस बहुव्रीहि समासमें एक मुख शब्दका लोप हो गया है उसी तरह 'एकादि हैं आदिमें जिनके वे एकादीनि' यहां भी एक आदि शब्दका लोप हो जाता है। अवयवसे विग्रह होता है
और समुदाय समासका अर्थ होता है। इससे एकको आदिको लेकर चार तक विभाग .... करना चाहिए; क्योंकि केवलज्ञान असहाय है उसे किसी अन्य ज्ञानकी सहायताकी अपेक्षा
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